बुधवार, 2 जनवरी 2013

बेनकाब चेहरे



चहरे बेनकाब  हो गए पहचान की जरुरत नहीं,

आदमी बेईमान हो गए नमन की जरुरत नहीं।


अपने ही  नाखुनो   से नोच डाला चेहरा अपना,
चेहरे  पर औरो   के नाखुनो  की जरुरत  नहीं।

खुद  के बोए   काँटे  जब चुभने ....लगे हो  तब ,
उठती टीसों को किसी क्रंदन की जरुरत  नहीं।

तत्पर है लूटने के लिए आदमी आदमी को यहाँ,
घरो  में अब  किसी दरवान    की जरुरत  नहीं।

टूटती सांसो की डोरी से लटक  रही है जिन्दगी,
"राज"  को किसी  स्पंदन  की  जरुरत   नहीं।








Place Your Ad Code Here

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा लेकिन आपने पता KUMAR615 क्युँ रखा पता नही अभी शुरुआत हैँ कोई अच्छा एडरेस रखे जैसे bhulibisriyaandeसे मिलता जुलता ।

    जवाब देंहटाएं
  2. bhulibisriyaande.blogspot.com ये अभेलेवल हैँ पता बदल लेँ तो मेरे ख्याल से अच्छा ही होगा ।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपने इतनी अच्छा मशवरा दिया ,इस पर विचार जरुर करेंगे। क्या करें ब्लॉग तकनीकी के प्रथम पावदान पर ही है अभी । आपकी कोई नयी पोस्ट नही आ रही है,क्या बात है भाई।बहुत सारे धन्यबाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुतीकरण.

    जवाब देंहटाएं

आपकी मार्गदर्शन की आवश्यकता है,आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है, आपके कुछ शब्द रचनाकार के लिए अनमोल होते हैं,...आभार !!!