रविवार, 6 जनवरी 2013

परायी स्त्री




यहाँ पति का घर, वहाँ पिता का घर,
उधर शायद पुत्र का घर,
पिता घर परायी पराये घर जाना है,
पति के घर परायी पराये घर से आयी है,
पुत्र के घर परायी .........शायद पुरानी है,
ऐसा जगह कहाँ  जहाँ वो परायी नही ?
क्या परायी स्त्री हमेशा परायी रहेगी,
परायी स्त्री ही हमारी माँ,बहन और बेटी है,
बेटी को परायी कहना क्या तुम्हे स्वीकार है,
परायी बेटी के  क्या है नसीब में,
क्या वह परायी ही रहेगी।

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14 टिप्‍पणियां:

  1. अपनी पोस्ट को फास्टैक द्वारा लोगो को बताएँ मतलब गुगल प्लस पर शेयर करे और आपकी मंडलिया मेँ शामिललोग को नोटिफिकेशन भी मिलेँ मास्टर टैक पर दी गुगल पलस शेयरिँग टिपस अपनाएँ । ब्लाँग मिटाने कि जरुरत नही हैँ सेँटिँग से पता बदल सकतेँ हैँ उसके बाद फीड पर उसे रजिस्टर करके फोलो इमेल गैजेट लगायेँ कुछ पुछना हैँ तो मेल जरुर करेँ varun.sah.v.k.s@gmail.com

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    उत्तर
    1. सभी पोस्ट को गूगल+ पर शेयर करते है।गूगल+ पर शो होता भी है।इस ब्लॉग का फीड हो चूका है,पता बदलने के लिए बाद में देखेंगे।

      हटाएं
  2. स्त्री के बारे में की गयी मार्मिक अभिब्यक्ति,बहुत ही सुंदर।

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  3. बेटी कभी पराई नही होती,लेकिन घर जरूर पराया हो जाता है,,,,

    recent post: वह सुनयना थी,

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर , सार्थक , श्रेष्ठ सृजन करते रहें …

    जवाब देंहटाएं
  5. स्त्रियों की व्यथा समझाने का सार्थक प्रयत्न सुंदर कविता के माध्यम से.

    यूँही लिखते रहिये. आपका ब्लॉग भी मैंने ज्वाइन किया है. मेरे ब्लॉग पर भी पधारे.

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  6. स्त्रियों के स्थिति को उजागर करने वाली बहुत ही सुंदर रचना है।

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  7. बेटियों को परायी समझना हमारी मूढ़ता है,बहुत ही अच्छी रचना।

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  8. पराया कहने वाले ये भूल जातें हैं ....कि इस धरती पर इन्हें यही लेके आई है ....बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..

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  9. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुतीकरण.

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आपकी मार्गदर्शन की आवश्यकता है,आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है, आपके कुछ शब्द रचनाकार के लिए अनमोल होते हैं,...आभार !!!