बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

तकदीर के मारे




           

             तूफां से डरकर लहरों के बीच  सकारे   कहाँ जाएँ,
             इस जहाँ में भटककर तकदीर के मारे कहाँ जाएँ ।
                              अब तो  खिंजा  भी गुल  खिलाने  लगे है,
                              अपनी बेबसी  को लेकर बहारें कहाँ जाएँ।
            उम्मीदे थी जिसकी चाहत का ...........हमेशा,
            हम तुमसे छुड़ाकर दामन बेसहारे कहाँ जाएँ।
                              उजाला हैं जहाँ में ऐ चाँद तेरी चांदनी से,
                              बता फलक के अभागे सितारे कहाँ जाएँ।
           नाम था लबों पे खुद के बाद तुम्हारा ऐ हंसी,
           तुम्हारे  नाम का वो जहां के लुटेरे कहाँ जाएँ।
                              हंसी मंजर था चाहत के लम्हे गुजरा था ऐ "राज"
                              सिसक-सिसक कर  वो रंगीन नजारें कहाँ जाएँ।

                                              

                              जब  नाव  जल  में छोड़  दी तूफ़ान  में ही  मोड़ दी,
                              दे दी चुनौती सिन्धु को तो धार क्या मझधार क्या !

                                                                                                           (सादर आभार)
                                       
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30 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर शब्द चयन और अभिव्यक्ति |
    आशा

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  2. उम्मीदे थी जिसकी चाहत का ...........हमेशा,
    हम तुमसे छुड़ाकर दामन बेसहारे कहाँ जाएँ।
    Very beautiful...

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  3. सधी हुई गजल-
    शुभकामनायें आदरणीय ||

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  4. सुन्दर गजल,बहुत बेहतरीन।

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  5. उजाला हैं जहाँ में ऐ चाँद तेरी चांदनी से,
    बता फलक के अभागे सितारे कहाँ जाएँ ...

    वाह क्या बात है ... सच कहा है चाँद इतनी तेज रौशनी ले के आता है की सितारे नज़र नहीं आते ... खो जाते हैं उसके अस्तित्व के आगे ...

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  6. अब तो खिंजा भी गुल खिलाने लगे है,
    अपनी बेबसी को लेकर बहारें कहाँ जाएँ

    बहुत ही लाजवाब, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  7. बहुत ही सुन्दर एवं प्यारी गज़ल की प्रस्तुति.धन्यबाद.

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  8. बहुत ही सुन्दर गज़ल,सुन्दर शब्द.

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  9. इस ग़ज़ल का जबाब नही,बहुत ही सुन्दरतम ग़ज़ल।

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  10. सुन्दर ग़ज़ल राजेंद्र जी | बधाई

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  11. उम्मीदे थी जिसकी चाहत का .....हमेशा,
    हम तुमसे छुड़ाकर दामन बेसहारे कहाँ जाएँ।

    बहुत ही सुन्दर गज़ल

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  12. बहुत ही सुंदर सार्थक प्रस्तुती।

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  13. इस सुंदर ग़ज़ल की तारीफ में क्या कहना,अतिसुन्दर।

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  14. आपकी गज़ल पढ़ के एक पुराना गाना याद आ गया ..
    भरी दुनिया में आखिर दिल को समझाने कहाँ जाएँ , मुहब्बत हो गयी जिनको वो दीवाने कहाँ जाएँ!
    बहुत खूब लिखा है राजेन्द्र जी!

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  15. वाह क्या बात है! बहुत खूब!

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  16. सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई आपको बढ़िया ग़ज़ल लिखी है

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  17. तूफां से डरकर लहरों के बीच सकारे कहाँ जाएँ,
    इस जहाँ में भटककर तकदीर के मारे कहाँ जाएँ ।

    बहुत ही सुंदर गज़ल.

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  18. बेहद की सवालिया रवानी लिए है यह रचना .

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  19. कविता के भाव एवं शब्द का समावेश बहुत ही प्रशंसनीय है

    मेरी नई रचना

    खुशबू

    प्रेमविरह

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  20. ...बढ़िया अभिव्यक्ति.... आपको धन्यवाद ............
    आप भी पधारो आपका स्वागत है ....pankajkrsah.blogspot.com

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  21. शुक्रिया आपकी टिपण्णी का इस खूबसूरत मुख्तलिफ बयानी का .

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  22. सुन्दर भाव अभिवयक्ति है आपकी इस रचना में लेकिन क्षमा सहित कहूँगा कि शिल्पगत बहुत सी कमियाँ भी है इस रचना में ,माफ़ी चाहूँगा कृपया अन्यथा ना ल.सादर वन्दे...

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  23. वाह.....
    बहुत बढ़िया ग़ज़ल..
    सुन्दर भाव,

    अनु

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  24. बहुत अच्छी नज्म, राजेन्द्र जी ब्लॉग जगत में आप हिट पर हिट दे रहे हैं। मुबारक।

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  25. आपकी कविता आपकी रचना निर्झर टाइम्स पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें http://nirjhar-times.blogspot.com और अपने सुझाव दें।

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आपकी मार्गदर्शन की आवश्यकता है,आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है, आपके कुछ शब्द रचनाकार के लिए अनमोल होते हैं,...आभार !!!