भूली बिसरी यादें पर आप हिन्दी ग़ज़लें , कविताएँ, हाइकु, बोध कथायें और उच्च कोटि के अनमोल वचन पढ़ने को मिलेगा।
रविवार, 21 जुलाई 2013
शनिवार, 6 जुलाई 2013
दिल का दर्द
दिल का दर्द ज़बाँ पे लाना मुश्किल है
अपनों पे इल्ज़ाम लगाना मुश्किल है
बार-बार जो ठोकर खाकर हँसता है
उस पागल को अब समझाना मुश्किल है
दुनिया से तो झूठ बोल कर बच जाएँ,
लेकिन ख़ुद से ख़ुद को बचाना मुश्किल है।
पत्थर चाहे ताज़महल की सूरत हो,
पत्थर से तो सर टकराना मुश्किल है।
जिन अपनों का दुश्मन से समझौता है,
उन अपनों से घर को बचाना मुश्किल है।
जिसने अपनी रूह का सौदा कर डाला,
सिर उसका ‘राज ’ उठाना मुश्किल है।
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चलते चलते,
मुश्किल चाहे लाख हो लेकिन इक दिन तो हल होती है,ज़िन्दा लोगों की दुनिया में अक्सर हलचल होती है।
आभर :अजीज आजाद
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