सोमवार, 21 अक्तूबर 2013

रिश्तों की डोर : हाइकू




१. 
रिश्तों की डोर 
अटूट है बन्धन 
टूटे न टूटे 

२. 
प्रचंड धूप 
सुख-दुख का तूफां
अटल प्यार 

३. 
प्रीत का रंग 
सुनहरी किरण 
मन चंद्रिका 

४. 
मन हमेशा 
प्रियतम के साथ 
नही अकेला 

५. 
सहज स्नेह 
हरपल बरसे 
नैनों में दिखे 

६. 
भवरें गाते 
मधुरम संगीत 
हर्षित मन 

७. 
साथ हमारा 
चंपा संग चमेली 
रहे हमेशा 

सोमवार, 14 अक्तूबर 2013

लौटकर आया नहीं



फूल की बातें सुनाकर वो गया,
किस अदा से वक़्त काँटे बो गया ।

गाँव की ताज़ा हवा में था सफ़र,
शहर आते ही धुएँ में खो गया ।

मौत ने मुझको जगाया था मगर,
ज़िंदगी के फ़लसफ़ों में सो गया ।

मेरा अपना वो सुपरिचित रास्ता,
कुछ तो है जो अब तुम्हारा हो गया ।

पा गया ख़ुदगर्ज़ियों का राजपथ,
रास्ता जो भी सियासत को गया ।

सीख तेरी काम आ जाती मगर,
हाथ से निकला जो अवसर तो गया ।

कौन बतलाए हुआ उस पार क्या,
लौटकर आया नहीं है जो गया ।
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वो सफ़र में साथ है पर इस अदाकारी के साथ ।
जैसे इक मासूम क़ातिल, पूरी तैयारी के साथ ।

                                                                           सादर आभार : विनय मिश्र 

रविवार, 6 अक्तूबर 2013

इन्सान को इन्सान समझिये



ताकत पे सियासत की ना गुमान कीजिये, 
इन्सान हैं इन्सान को इन्सान समझिये। 

यूँ पेश आते हो मनो नफरत हो प्यार में, 
मीठे बोल न निकले क्यूँ जुबां की कटार से। 

खुद जख्मी हो गये हो अपने ही कटार से, 
सच न छुपा पाओगे अपने इंकार से। 

आँखें  भुला के दिल के आईने में झाकिये, 
इन्सान हो इन्सान को इन्सान ही समझिये। 

कैसी ख़ुशी है आप को ऐसे आतंक से ?
कैसा सकुन बहते हुए खून के रंग से ?

तलवारों खंजरों में क्यूँ किया सिंगार  है, 
आप भी दुश्मन हैं आपके इस जंग में। 

खुद से न सही अपने आप से डरिये, 
इन्सान हो इन्सान को इन्सान समझिये। 

खुद का शुक्र है आप भी इन्सान हैं, 
इंसानियत से न जाने क्यूँ अनजान हैं। 

शुक्र कीजिये की खुदा मेहरबान है, 
वरना आप कौन ? क्या पहचान है। 

सच यही है, अब तो ये जान लीजिये, 
इन्सान हो इन्सान को इन्सान समझिये।