मैं तेरे आरजू से सख्त घायल हो गया,
इस कदर चाहा की नीम पागल हो गया।
रेत का अबंर रातो रात दलदल हो गया,
रोया कोई इस तरह की सहरा भी जलधल हो गया।
आसुओं का इक समंदर जब्ज कर के दोस्तों,
देखते ही देखते वह शख्स बादल हो गया।
आदमी खूंखार व् वहशी हो गए इस दौर में,
और उनकी मेहरबानी शहर जंगल हो गया।
धूप भी सुहानी थी तुम्हारे साथ-साथ ,
तुम नहीं तो शाम का साया बोझिल हो गया।
रात मैंने ऐसा ख्वाब देखा की क्या कहूँ,
तुझसे लिपटा मैं तेरा रंगीन आँचल हो गया।
हाय वह चेहरा ख्याल आता है अब भी मुझे,
मेरी चश्मे याद से भी वो ओझल हो गया।
उस सलोनी सूरत को आँखों में संजोये,
राज तेरी याद में पागल दीवाना हो गया।
अज्ञात