प्रत्येक शुभ कार्य में हम कन्या पूजन करते हैं, लेकिन बड़ा सवाल है कि उसी कन्या को हम जन्म से पहले ही मारने का पाप क्यों करते हैं? आज समाज के बहुत से लोग शिक्षित होने के बावजूद कन्या भूर्ण हत्या जैसे घृणित कार्य को अंजाम दे रहे हैं। जो आंचल बच्चों को सुरक्षा देता है, वही आंचल कन्याओं की गर्भ में हत्या का पर्याय बन रहा है।हमारे देश की यह एक अजीब विडंबना है कि सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद समाज में कन्या-भ्रूण हत्या की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। समाज में लड़कियों की इतनी अवहेलना, इतना तिरस्कार चिंताजनक और अमानवीय है। जिस देश में स्त्री के त्याग और ममता की दुहाई दी जाती हो, उसी देश में कन्या के आगमन पर पूरे परिवार में मायूसी और शोक छा जाना बहुत बड़ी विडंबना है।आज भी शहरों के मुकाबले गांव में दकियानूसी विचारधारा वाले लोग बेटों को ही सबसे ज्यादा तव्वजो देते हैं, लेकिन करुणामयी मां का भी यह कर्तव्य है कि वह समाज के दबाव में आकर लड़की और लड़का में फर्क न करे। दोनों को समान स्नेह और प्यार दे। दोनों के विकास में बराबर दिलचस्पी ले। बालक-बालिका दोनों प्यार के बराबर अधिकारी हैं। इनके साथ किसी भी तरह का भेद करना सृष्टि के साथ खिलवाड़ होगा।
साइंस व टेक्नॉलोजी ने कन्या-वध की सीमित समस्या को, अल्ट्रासाउंड तकनीक द्वारा
भ्रूण-लिंग की जानकारी देकर, समाज में कन्या भ्रूण-हत्या को व्यापक बना दिया है।
दुख की बात है कि शिक्षित तथा आर्थिक स्तर पर सुखी-सम्पन्न वर्ग में यह अतिनिन्दनीय
काम अपनी जड़ें तेज़ी से फैलाता जा रहा है।1995 में बने जन्म पूर्व नैदानिक अधिनियम नेटल डायग्नोस्टिक एक्ट 1995 के मुताबिक बच्चे के लिंग का पता लगाना गैर कानूनी है। इसके बावजूद इसका उल्लंघन सबसे अधिक होता है.अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफी मशीन या अन्य तकनीक से गर्भधारण पूर्व या बाद लिंग चयन और
जन्म से पहले कन्या भ्रूण हत्या के लिए लिंग परीक्षण करना, करवाना, सहयोग देना,
विज्ञापन करना कानूनी अपराध है।
लेकिन यह स्त्री-विरोधी नज़रिया किसी भी रूप में गरीब परिवारों तक ही सीमित नहीं है. भेदभाव के पीछे सांस्कृतिक मान्यताओं एवं सामाजिक नियमों का अधिक हाथ होता है. यदि इस प्रथा को बन्द करनी है तो इन नियमों को ही चुनौती देनी होगी.कन्या भ्रूण हत्या में पिता और समाज की भागीदारी से ज्यादा चिंता का विषय है इसमें मां की भी भागीदारी. एक मां जो खुद पहले कभी स्त्री होती है, वह कैसे अपने ही अस्तितव को नष्ट कर सकती है और यह भी तब जब वह जानती हो कि वह लड़की भी उसी का अंश है. औरत ही औरत के ऊपर होने वाले अत्याचार की जड़ होती है यह कथन पूरी तरह से गलत भी नहीं है. घर में सास द्वारा बहू पर अत्याचार, गर्भ में मां द्वारा बेटी की हत्या और ऐसे ही कई चरण हैं जहां महिलाओं की स्थिति ही शक के घेरे में आ जाती है.औरतों पर पारिवारिक दबाव को भी इन्कार नहीं किया जा सकता.
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
आने दो रे आ ने दो, उन्हें इस जीवन में आने दो
भ्रूणहत्या का पाप हटे, अब ऐसा जाल बिछाने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
मन के इस संकीर्ण भाव को, रे मानव मिट जाने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
(भाउक जी कुछ पंक्तियाँ)
(आइये एक संकल्प लेते हैं ,कन्या भ्रूण -हत्या एक जघन्य अपराध है ,हम सभी को मिलकर साँझा प्रयत्नों एवं जन जाग्रती द्वारा इस कु -कृत्य को जड़ से उखाड़ने के समस्त प्रयत्न करेंगें !यही समय की मांग है !!)
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समय को ध्यान में रक कर लिखा प्रासंगिक आलेख। आपको जब समय रहेगा तब रचनाकार में प्रकाशित दो आलेख पढें- 'एक लडकी एक लडका' तथा दूसरा 'हद हो गई।' दोनों लघु आलेखों की लिंक मेरे ब्लॉग पर है।
जवाब देंहटाएंधन्यबाद विजय जी.
हटाएंबहुत ही बेहतरीन संदेश देता सार्थक आलेख.शहरों में तो कई हत्या केन्द्र पाए जाते है.बहुत ही गंभीर समस्या है हम सब को इसके प्रति जागरूक होना पडेगा.विजय सिंदे भी इस पर बहुत ही अच्छा लेख लिखे है.
जवाब देंहटाएंआज भूर्ण हत्या एक गम्भीर समस्या का रूप ले लिया है,कब हम लोग की मानसिकता स्वच्छ होगी,बेहतरीन आलेख.
जवाब देंहटाएंभ्रूण ह्त्या पूरे देश की समस्या है, और इससे हर तबका चिंतित भी. पर इस अपराध में कोई कमी नहीं आ रही. जीवित स्त्रियों की दुर्दशा भी कही न कहीं इसके लिए जिम्मेवार है; जिस पर हमारी नज़र नहीं जाती. जब तक स्त्रियों को उनका अधिकार और सम्मान नहीं मिलेगा, यह होता ही रहेगा. बढ़िया आलेख. शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंगंभीर समस्या पर सार्थक आलेख,आभार.
जवाब देंहटाएंधन्यबाद मित्रवर.
हटाएंसार्थकता लिये सशक्त प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक आलेख.
जवाब देंहटाएंगैर-कानूनी तो कोई दुष्कार्य तब होगा, जब कानून निर्माता स्वयं ठीक हों। कन्याओं के प्रति होनेवाले अपराधों और अपराधियों पर तन्त्रात्मक शिथिलता के कारण ही दम्पत्तियां लिंग परीक्षण के लिए विवश हैं। और रही औरत की इस कार्य में शामिल होने की बात तो लड़की के पैदा होने से लेकर उसकी शादी होने तक उसे जिस सामाजिक दुराचार से गुजरना पड़ता है, उससे बेहतर तो उनका जन्म से पूर्व ही विलीन हो जाना श्रेयस्कर है और इसे औरत ही महसूस कर सकती है। ना जाने उस बेचारी को कहां-कहां समझौते करने पड़ते हैं।
जवाब देंहटाएंजी आपकी बात सही । सराहनिये सँदेश है
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति ...आभार..
जवाब देंहटाएंएक गंभीर समस्या को बयाँ करता आलेख !!
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति गहन अनुभूति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई
मर्मस्पर्शी पोस्ट ..... बिटिया के प्रति हमारी असवेदंशीलता दुखद है
जवाब देंहटाएंकन्या-भूर्ण हत्या समाज में कुष्ठ रोग के समान हैं इसका इलाज नहीं हुआ तो फैलती जाएगी। और इलाज होगा सब के सहयोग से जैसा की आपने बताया। सकारात्मक लेख व संकल्प।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर भी आइये ..अच्छा लगे तो ज्वाइन भी कीजिये
वाकई में!
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट!
सामयिक सार्थक अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंशायद आँखें खोलने में कामयाब हो सके !!
शुभकामनायें !!
mai knya bhrun hataya ke khilaph abhiyan me shamil hu ..........meri yahi kamna hai ki har ghar me beti rupi phul khile
जवाब देंहटाएंपहले से तो दहेज़ प्रथा था ही भ्रूण हत्या का एक मुख्य कारण अब आजकल होने वाली घिनौनी घटनाएं इस अपराध की आग को और बढ़ावा दे रही है क्यूंकि मैं महिला संरक्षण संस्था से जुडी हुई हूँ इस भ्रूण हत्या जैसे संगीन मुद्दे पर काम करती रहती हूँ ,तो ये पाया की जो छोटे तबके की औरते हैं वो इस मामले में कम जागरूक है और यदि हैं भी तो डर से पति या ससुराल वालो के सामने बोल नहीं पाती उनको जागरूक करने का काम ही हम लोग कर रहे हैं आपका आलेख बहुत अच्छा लगा अपने आस पास ये जागरूकता फैलाइये बधाई एवं शुभकामनायें आपको
जवाब देंहटाएंयह विडम्बना है आज माँ की कोख ही भ्रूण का कब्रिस्तान बन रही है .यह हमारे नागर बोध हमारी सिविलिटी का स्तर है जो बच जाती हैं उन्हें हर दम वहशियों से खतरा रहता है चाहे स्कूल बस हो या घर .विषम स्त्री -पुरुष अनुपात सामाजिक क्रूरता और बर्बरता लचर क़ानून का प्रतीक हैं जिन पर कभी कभार ही अम्ल होता है .बढ़िया पोस्ट सामजिक सन्दर्भों को खंगालती है .
जवाब देंहटाएंभ्रूण हत्या के पीछे दो सबसे बड़ा कारण हैं - पुत्र मोह और बेटीके शादी में दहेज - इसे दूर करना होगा -बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंLATEST POST सुहाने सपने
कन्या भूर्ण हत्या एक सामाजिक अभिशाप है इसे मिलकर ही खत्म किया जा सकता है.सार्थक आलेख के लिए धन्यबाद.
जवाब देंहटाएंहमज को सार्थक संदेश देती बेहतरीन प्रस्तुति,आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत दुःख होता है समाज के इस अभिशाप के घटना को सून क्र,न जाने कब हमारी मानसिकता बदलेगी,बेहतरीन लेख.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही बात कही आपने , लेकिन जब तक हम दूसरों की बेटियों का सम्मान करना नही सीखेंगे तब तक हालात नही सुधरने वाले
जवाब देंहटाएंकल 25/04/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
कन्या भ्रूण हत्या जैसे गंभीर विषय पर एक गंभीर चिंतन..सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंगंभीर चिंतन।...
गहन प्रस्तुति
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