दिल का दर्द ज़बाँ पे लाना मुश्किल है
अपनों पे इल्ज़ाम लगाना मुश्किल है
बार-बार जो ठोकर खाकर हँसता है
उस पागल को अब समझाना मुश्किल है
दुनिया से तो झूठ बोल कर बच जाएँ,
लेकिन ख़ुद से ख़ुद को बचाना मुश्किल है।
पत्थर चाहे ताज़महल की सूरत हो,
पत्थर से तो सर टकराना मुश्किल है।
जिन अपनों का दुश्मन से समझौता है,
उन अपनों से घर को बचाना मुश्किल है।
जिसने अपनी रूह का सौदा कर डाला,
सिर उसका ‘राज ’ उठाना मुश्किल है।
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चलते चलते,
मुश्किल चाहे लाख हो लेकिन इक दिन तो हल होती है,ज़िन्दा लोगों की दुनिया में अक्सर हलचल होती है।
आभर :अजीज आजाद
गज़ब, बहुत खूब, खूबशूरत अहसाह
जवाब देंहटाएंदुनिया से तो झूठ बोल कर बच जाएँ,
जवाब देंहटाएंलेकिन ख़ुद से ख़ुद को बचाना मुश्किल है..........हालातों पर सही अर्थपूर्ण पंक्तियां।
बहुत खूब .....खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंदुनिया से तो झूठ बोल कर बच जाएँ,
जवाब देंहटाएंलेकिन ख़ुद से ख़ुद को बचाना मुश्किल है।
...वाह! बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
सुंदर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है...बधाई...
जवाब देंहटाएंबेहद खुबसूरत गजल..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़ियाँ...
:-)
दुनिया से तो झूठ बोल कर बच जाएँ,
जवाब देंहटाएंलेकिन ख़ुद से ख़ुद को बचाना मुश्किल है।
बिलकुल सही कहा एक दिन तो खुद का सामना करना ही पड़ता है, बहुत प्यारी गजल, शुभकामनाये
यहाँ भी पधारे ,
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_5.html
दिल से निकली ,,,दिल के दर्द की आवाज़ !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (07-07-2013) को <a href="http://charchamanch.blogspot.in/“ मँहगाई की बीन पे , नाच रहे हैं साँप” (चर्चा मंच-अंकः1299) <a href=" पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह !!! बहुत उम्दा लाजबाब गजल ,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: गुजारिश,
. .बेहतरीन अभिव्यक्ति . आभार क्या ये जनता भोली कही जाएगी ? आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -5.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN लड़कों को क्या पता -घर कैसे बनता है ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति . आभार क्या ये जनता भोली कही जाएगी ? आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -5.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN लड़कों को क्या पता -घर कैसे बनता है ...
जवाब देंहटाएंमैं भी कितना भुलक्कड़ हो गया हूँ। नहीं जानता, काम का बोझ है या उम्र का दबाव!
जवाब देंहटाएं--
पूर्व के कमेंट में सुधार!
आपकी इस पोस्ट का लिंक आज रविवार (7-7-2013) को चर्चा मंच पर है।
सूचनार्थ...!
--
रूह का सौदा करने वाले सर क्या उठाएंगे , मगर आजकल तो आसमान उठाये रखते हैं :(
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंदिल का दर्द ज़बाँ पे लाना मुश्किल है
जवाब देंहटाएंअपनों पे इल्ज़ाम लगाना मुश्किल है
बार-बार जो ठोकर खाकर हँसता है
उस पागल को अब समझाना मुश्किल है
--- लाजबाब गजल
superb....bahut khoob
जवाब देंहटाएंदुनिया से तो झूठ बोल कर बच जाएँ,
जवाब देंहटाएंलेकिन ख़ुद से ख़ुद को बचाना मुश्किल है।
बहुत सुन्दर.
bahut khoob ...sateek
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत रचना... सार्थक बातें.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना आदरणीय...
जवाब देंहटाएंक्या खुब कही....
जिन अपनों का दुश्मन से समझौता है,
उन अपनों से घर को बचाना मुश्किल है।
पत्थर चाहे ताज़महल की सूरत हो,
जवाब देंहटाएंपत्थर से तो सर टकराना मुश्किल है...खूबसूरत गज़ल
पत्थरों से सर टकराना मुश्किल है ........खूबसूरत ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंसुंदर.
जवाब देंहटाएंदुनिया से तो झूठ बोल कर बच जाएँ,
जवाब देंहटाएंलेकिन ख़ुद से ख़ुद को बचाना मुश्किल है..
सच कहा है ... खुद से बचना बहुत मुश्किल है ... लाजवाब शेर है गज़ल का ...
जिन अपनों का दुश्मन से समझौता है,
जवाब देंहटाएंउन अपनों से घर को बचाना मुश्किल है।
सहमत हूँ इस बेहतरीन अभिव्यक्ति से , राजेन्द्र भाई !
Bahut khub farmaya
जवाब देंहटाएंAaj fir yaad unkibaa gay
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