रविवार, 2 दिसंबर 2012

इंसानी चेहरे के पीछे- गज़ल



इंसानी    चेहरे के  पीछे  खूनी   मंजर  देखे  है,

और प्यार के उम्मीदों पर पड़ते पत्थर देखे है।


लहरों के पीछे हो जाना मुशिकल शायद नहीं रहा,
अपनी बस्ती में लोगो   के खौफ़जदा घर देखे  है।


जिसको हमने साथ किया था तन्हाई में चलने को,
न  वक्त में  उनके हाथ  में हमने  खंजर देखे है।


मंजिलो से कदमो को रिश्ता कितना मुश्किल है,
बरसातों में  कच्चे घर  के चुते  छप्पर  देखे   है।


अब तो चलना भी डर लगता है किसको हाथ साथ करे,
ऐ "राज"राह  बदल कर चलने वाले कितने रहवर देखे है।




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2 टिप्‍पणियां:

  1. इंसानी चेहरे के पीछे खुनी मंजर देखे है,
    और प्यार के उम्मीदों पर पड़ते पत्थर देखे है...

    बहुत सुन्दर ...बधाई .

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  2. सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.

    जवाब देंहटाएं

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