शनिवार, 30 मार्च 2013

खुबसूरत लम्हा






 

खुबसूरत कोई लम्हा नही मिलने वाला,
एक हँसता हुआ चेहरा नही मिलने वाला।
 
तेरे हसीन चेहरे को नींद में भी नहीं भूलता,
यूं ही रेतो पर चलने से नही मिलने वाला.
 
तब मेरे दर्द को महसूस करेगें लेकिन,
मेरी खातिर मसीहा तो नही मिलने वाला।
 
वे वजह अपनी निगाहों को परेशा मत करो,
वक्त के भीड में अपना नही मिलने वाला।
 
जाने क्या रंग बदल ले वो सितमगर अपना,
अब किसी से कहीं तन्हा नही मिलने वाला।
 
ऐ "राज"तुमने चिरागों को बुझाया क्योंकर,
इन अँधेरे में तो साया नही मिलने वाला।



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37 टिप्‍पणियां:

  1. वाकई ज़नाब़!
    बहुत उम्दा नज़्म पेश की है आपने!

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  2. सुंदर भावों की बहुत उम्दा नज्म के लिए बधाई ,,,राजेन्द्र जी

    RECENT POST: होली की हुडदंग ( भाग -२ )

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  3. बहुत बढियाँ लगा .. आप बहुत अच्छा लिखतेँ ।

    मेरा ठिकाना _>> वरुण की दुनियाँ

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  4. बहुत सुन्दर राजेंदर भाई | बहुत गहरे शब्द और गहन अर्थ छिपा है इस रचना में | पढ़कर बहुत आनंद प्राप्त हुआ | नमन |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  5. बहुत सुन्दर....होली की हार्दिक शुभकामनाएं ।।
    पधारें कैसे खेलूं तुम बिन होली पिया...

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  6. उम्दा नज़्म.... आखिरी तीनों अशआर बहुत अच्छे लगे..

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  7. बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति.......

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  8. वाकई बेहतरीन नज्म,बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.

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  9. बेहतरीन लाजबाब उम्दा नज्मे,सुन्दर प्रस्तुति.

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  10. सुंदर भावों की बहुत उम्दा नज्म के लिए बधाई आदरणीय राजेंदर जी ,सादर नमस्कार !

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  11. बहुत ही सार्थक और सुन्दर ग़ज़ल की रचना,आभार.

    जवाब देंहटाएं
  12. जाने क्या रंग बदल ले वो सितमगर अपना,
    अब किसी से कहीं तन्हा नही मिलने वाला.

    बेहद ही सुन्दर पंक्तियाँ,सार्थक ग़ज़ल.

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  13. (बे -वजह )

    वे वजह अपनी निगाहों को परेशा मत करो,
    वक्त के भीड में अपना नही मिलने वाला।

    जाने क्या रंग बदल ले वो सितमगर अपना,
    अब किसी से कहीं तन्हा नही मिलने वाला।

    राजेन्द्र जी काबिले दाद अशआर हैं सब के सब .शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .

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  14. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (31-03-2013) के चर्चा मंच 1200 पर भी होगी. सूचनार्थ

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  15. काबिलेतारीफ उत्कृष्ट रचना,आभार.

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  16. बहुत ही सुन्दर रचना,शुक्रिया.

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  17. वे वजह अपनी निगाहों को परेशा मत करो,
    वक्त के भीड में अपना नही मिलने वाला।
    बहुत खूबसूरत शेर ...!

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  18. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  19. बहुत खुबसूरत नज्म पेश की है आपने..बधाई और शुभकामनाएँ!

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  20. वे वजह अपनी निगाहों को परेशा मत करो,
    वक्त के भीड में अपना नही मिलने वाला ..

    वाह ... लाजवाब शेर है इस गज़ल का ... मज़ा आया ...

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  21. जाने क्या रंग बदल ले वो सितमगर अपना,
    अब किसी से कहीं तन्हा नही मिलने वाला।

    खूबसूरत बात कही है आपने इस शैर में .

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  22. नकारात्मक भावनाओं की सकारात्मक प्रस्तुति. शानदार...

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  23. वे वजह अपनी निगाहों को परेशा मत करो,
    वक्त के भीड में अपना नही मिलने वाला।

    ....बहुत खूब! बेहतरीन ग़ज़ल..

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  24. तब मेरे दर्द को महसूस करेगें लेकिन,
    मेरी खातिर मसीहा तो नही मिलने वाला।..sahi bat bahut acchhi prastuti....

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  25. बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!!
    पधारें कैसे खेलूं तुम बिन होली पिया...

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  26. आप सब का हार्दिक आभार,धन्यबाद.

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  27. ऐ "राज"तुमने चिरागों को बुझाया क्योंकर,
    इन अँधेरे में तो साया नही मिलने वाला।.........बहुत बढ़िया

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आपकी मार्गदर्शन की आवश्यकता है,आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है, आपके कुछ शब्द रचनाकार के लिए अनमोल होते हैं,...आभार !!!