खुबसूरत कोई लम्हा नही मिलने वाला,
एक हँसता हुआ चेहरा नही मिलने वाला।
तेरे हसीन चेहरे को नींद में भी नहीं भूलता,
यूं ही रेतो पर चलने से नही मिलने वाला.
तब मेरे दर्द को महसूस करेगें लेकिन,
मेरी खातिर मसीहा तो नही मिलने वाला।
वे वजह अपनी निगाहों को परेशा मत करो,
वक्त के भीड में अपना नही मिलने वाला।
जाने क्या रंग बदल ले वो सितमगर अपना,
अब किसी से कहीं तन्हा नही मिलने वाला।
ऐ "राज"तुमने चिरागों को बुझाया क्योंकर,
इन अँधेरे में तो साया नही मिलने वाला।
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वाकई ज़नाब़!
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा नज़्म पेश की है आपने!
KHOOBSHURAT NAZM,(NEW POST-GHALIB KO KYEE DIL....)
जवाब देंहटाएंsundar ahshas ,umda prastuti(new-fata ft...&..
जवाब देंहटाएंसुंदर भावों की बहुत उम्दा नज्म के लिए बधाई ,,,राजेन्द्र जी
जवाब देंहटाएंRECENT POST: होली की हुडदंग ( भाग -२ )
बहुत बढियाँ लगा .. आप बहुत अच्छा लिखतेँ ।
जवाब देंहटाएंमेरा ठिकाना _>> वरुण की दुनियाँ
बहुत सुन्दर राजेंदर भाई | बहुत गहरे शब्द और गहन अर्थ छिपा है इस रचना में | पढ़कर बहुत आनंद प्राप्त हुआ | नमन |
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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बहुत सुन्दर....होली की हार्दिक शुभकामनाएं ।।
जवाब देंहटाएंपधारें कैसे खेलूं तुम बिन होली पिया...
Bahut Sunder...
जवाब देंहटाएंumda nazm...
जवाब देंहटाएंउम्दा नज़्म.... आखिरी तीनों अशआर बहुत अच्छे लगे..
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति.......
जवाब देंहटाएंsundar bhav liye behtrin prstuti.
जवाब देंहटाएंवाकई बेहतरीन नज्म,बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लाजबाब उम्दा नज्मे,सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसुंदर भावों की बहुत उम्दा नज्म के लिए बधाई आदरणीय राजेंदर जी ,सादर नमस्कार !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक और सुन्दर ग़ज़ल की रचना,आभार.
जवाब देंहटाएंजाने क्या रंग बदल ले वो सितमगर अपना,
जवाब देंहटाएंअब किसी से कहीं तन्हा नही मिलने वाला.
बेहद ही सुन्दर पंक्तियाँ,सार्थक ग़ज़ल.
(बे -वजह )
जवाब देंहटाएंवे वजह अपनी निगाहों को परेशा मत करो,
वक्त के भीड में अपना नही मिलने वाला।
जाने क्या रंग बदल ले वो सितमगर अपना,
अब किसी से कहीं तन्हा नही मिलने वाला।
राजेन्द्र जी काबिले दाद अशआर हैं सब के सब .शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .
बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (31-03-2013) के चर्चा मंच 1200 पर भी होगी. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर जी
जवाब देंहटाएंकाबिलेतारीफ उत्कृष्ट रचना,आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना,शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंbahut sundar......
जवाब देंहटाएंवे वजह अपनी निगाहों को परेशा मत करो,
जवाब देंहटाएंवक्त के भीड में अपना नही मिलने वाला।
बहुत खूबसूरत शेर ...!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत नज्म पेश की है आपने..बधाई और शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंवे वजह अपनी निगाहों को परेशा मत करो,
जवाब देंहटाएंवक्त के भीड में अपना नही मिलने वाला ..
वाह ... लाजवाब शेर है इस गज़ल का ... मज़ा आया ...
जाने क्या रंग बदल ले वो सितमगर अपना,
अब किसी से कहीं तन्हा नही मिलने वाला।
खूबसूरत बात कही है आपने इस शैर में .
नकारात्मक भावनाओं की सकारात्मक प्रस्तुति. शानदार...
जवाब देंहटाएंवे वजह अपनी निगाहों को परेशा मत करो,
जवाब देंहटाएंवक्त के भीड में अपना नही मिलने वाला।
....बहुत खूब! बेहतरीन ग़ज़ल..
तब मेरे दर्द को महसूस करेगें लेकिन,
जवाब देंहटाएंमेरी खातिर मसीहा तो नही मिलने वाला।..sahi bat bahut acchhi prastuti....
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!!
जवाब देंहटाएंपधारें कैसे खेलूं तुम बिन होली पिया...
अच्छी रचना ।
जवाब देंहटाएंआप सब का हार्दिक आभार,धन्यबाद.
जवाब देंहटाएंऐ "राज"तुमने चिरागों को बुझाया क्योंकर,
इन अँधेरे में तो साया नही मिलने वाला।.........बहुत बढ़िया
अच्छी रचना ।
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