देखता रहा,
खुली आँखों से ख्वाब
जहां में फैली हुई
हैवानियत के मंजरों को
हर पल होते हुए
कत्ल,चोरी.रहजनी और दुराचार को
सुख-चैन लूटते हाथों से
मिलती ब्यथाएं अनतुली
थरथराती बुनियादें
दम बेदम फरियादें
खौफ का एहसास कराती
खून से लथपथ हवायें
शाम होते ही
सिमटते सारे रास्ते
मची है होड़ हर तरफ
धोखा,झूठ,फरेब और बेईमानी की
नेकी की राहों में फैली
बिरानगीं और तीरगी का बसेरा
पहलू बदल कर ली अंगडाई
पर न कोई इन्कलाब दिखा
जी रहे हैं सभी यहाँ
आपसी रंजिसों के साथ
भला कब तक ?
ये भी कोई जीना है. |
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बढ़िया प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें -
आपका आभार आदरणीय.
हटाएंआस पास के माहौल का सही चित्रण किया है.
जवाब देंहटाएंसुंदर.
सादर आभार महोदय.
हटाएंवर्तमान वास्तव का वर्णन करने वाली सार्थक प्रस्तुति। इंसान को खौपनाक सपनें खुली आंखों से देखने पड रहा है विडंबना को दर्शाता है।
जवाब देंहटाएंआपका आभार विजय जी.
हटाएंsahi kaha apne.....fir bhi jeena tho hai...jab tak sansein hain
जवाब देंहटाएंजी ही तो रहे हैं सभी...आपका आभार.
हटाएंबहुत बढियाँ
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति का आभार.
हटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति! मेरी बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंधन्यबाद ब्रिजेश जी.
हटाएंराजेन्द्र जी ,मवेशियों के चारे के लिए एक पादप वनस्पति है रेप .केबेज फेमिली का यह वार्षिक वनस्पति है जिसे व्यावसायिक पादप के तौर पर उगाया जाता है .इस पर चमकीले पीले पुष्प आते हैं .एक लुब्रिकेंट के रूप में मवेशियों के चारे के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता है खाना पकाने में भी यह प्रयुक्त ज़रूर होता है लेकिन गुणवत्ता के हिसाब से यह घटिया समझा जाता है .इसका इस्तेमाल साबुन बनाने में भी होता है .इसके बीज से ही तेल तैयार किया जाता है .इसे कनाडा में विकसित किया गया .उत्तरी अमेरिका इसका सबसे ज्यादा उत्पादन करता है .इसे ही केनोला और इसके तेल को (तिलहन ,और बिनौला का तेल )भी कह दिया जाता है .
जवाब देंहटाएंधन्यबाद आपका शंका समाधान के लिए.
हटाएंजी रहे हैं सभी यहाँ
जवाब देंहटाएंआपसी रंजिसों के साथ
जी रहे हैं सभी यहाँ
आपसी रंजिसों के साथ
ये सारा खेल मायाबेटी (भ्रष्टाचार )ने रचाया है .कचरा भरा हुआ है सब आत्माओं में विकारों का .
बहुत बेहतरीन प्रासंगिक प्रेक्षण का रूपक प्रस्तुत करती है यह रचना .
धन्यबाद महोदय.
हटाएंbhavpoorn rachana ...aaj ke zamane ka sach ..
जवाब देंहटाएंधन्यबाद शालिनी जी.
हटाएंआज के हालात पर बेहतरीन प्रस्तुति,धन्यबाद.
जवाब देंहटाएंआपका भी आभार मित्र.
हटाएंबहुत ही सार्थक और भावपूर्ण प्रस्तुति,आभार.
जवाब देंहटाएंधन्यबाद प्रेम जी.
हटाएंपहलू बदल कर ली अंगडाई
जवाब देंहटाएंपर न कोई इन्कलाब दिखा
बेहतरीन और बेहतरीन प्रस्तुतीकरण.....
आपका भी सादर आभार है.
हटाएंबदलते हालात को हम जागते हुए स्वप्न की तरह ही देख रहें है...बेहतरीन रचना.
जवाब देंहटाएंआपका स्वागत है ब्लॉग पर.
हटाएंbahut hi behtrin rachna,dhnybad...
जवाब देंहटाएंआपका आभार.
हटाएंसत्य ही लिखें है,जागते आँखों से ख्वाब देख रहें है आज की बिगड़ते हालात की. किसी ने कहा है ...
जवाब देंहटाएंखुली आँखों से ख्वाब देख रही हूँ
कभी चौंक रही हूँ कभी खिल रही हूँ
ऐसा लगता है जैसे पास आ गया हो आसमान
और क्षितिज से जाकर मैं मिल रही हूँ
आपके विचार का स्वागत है.
हटाएंइश्वर करे,अगले वर्ष फिर होली तक सारे पर्व साथ मनायें !!
जवाब देंहटाएं---------------------------------------------
चाहत है,'मनाकाश' में, 'प्यार के परिन्दों' का उड़ना |
अच्छा लगता है, हकीकत में अपने मन- मीतों से जुडना ||
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आप की यथार्थ वादी रचना के लिये वधाई !!
आपका स्वागत है इस ब्लॉग पर....
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं--
इंजीनियर प्रदीप कुमार साहनी अभी कुछ दिनों के लिए व्यस्त है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी चर्चा मंच पर सम्मिलित किया जा रहा है और आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (03-04-2013) के “शून्य में संसार है” (चर्चा मंच-1203) पर भी होगी!
सूचनार्थ...सादर..!
सादर आभार आदरणीय!
हटाएंखुली आँखों से हकीकत देख ली आपने .....
जवाब देंहटाएंकाश! ये ख्वाब होता ???
शुभकामनायें!
सादर आभार आदरणीय.
हटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति! राजेन्द्र जी,,,
जवाब देंहटाएंRecent post : होली की हुडदंग कमेंट्स के संग
धन्यबाद आदरणीय.
हटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंधन्यबाद अजीज भाई...
हटाएं.बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति आभार हर पार्टी ही रखे करिश्माई अदा है . .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-1
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरेया!
हटाएंबहुत ही सार्थक शब्द.
जवाब देंहटाएंआपका स्वागत है आदरणीय.
हटाएंआभार है आपका.
जवाब देंहटाएंsach men khuli ankhon ke khwab ............bhavpoorn abhovyakti..
जवाब देंहटाएंYour welcome,
हटाएंजिस हालात में जी रहे है उनका बखूबी चित्रण,आभार.
जवाब देंहटाएंआपके ख्वाब में सत्यता है जनाब,बेहतरीन अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंआपके ख्वाब में सत्यता है जनाब,बेहतरीन अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंdhnyabad
हटाएंसच लिखा है .. माहोल तो ऐसा ही है ... पर इसके लिए हम सब ही तो जिम्मेवार हैं अधिकतर ... ओर इसका बदलाव भी हमसब से ही आएगा ...
जवाब देंहटाएंधन्यबाद आदरणीय.
हटाएंभावपूर्ण रचना
आपका आभार.
हटाएंसच में! हालात बहुत ही खराब हैं....
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना!
~सादर!!!
खुली आँखों से ख्वाब नहीं सामयिक हालात का मंजर दिख रहा. सार्थक रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर वर्णन आधुनिक कुरीति का।
जवाब देंहटाएंफिर भी तो किसी को चैन नहीं -सब उछल-कूद कर चुप बैठ जाते हैं!
जवाब देंहटाएंन कोई इन्कलाब दिखा
जवाब देंहटाएंजी रहे हैं सभी यहाँ
आपसी रंजिसों के साथ
मन की व्यथा को परोसती भावना पूर्ण प्रस्तुति.