शनिवार, 15 जून 2013

रौनक़-ए-बाज़ार




ये जो दीवाने से दो चार नज़र आते हैं 
इन में कुछ साहिब-ए-असरार नज़र आते हैं

तेरी महफ़िल का भरम रखते हैं सो जाते हैं 
वरना ये लोग तो बेदार नज़र आते हैं

दूर तक कोई सितारा है न कोई जुगनू
मर्ग-ए-उम्मीद के आसार नज़र आते हैं

मेरे दामन में शरारों के सिवा कुछ भी नहीं
आप फूलों के ख़रीदार नज़र आते हैं

कल जिसे छू नहीं सकती थी फ़रिश्तों की नज़र
आज वो रौनक़-ए-बाज़ार नज़र आते हैं


चलते चलते एक शेर पर गौर फरमायें ......

मैं ने पलकों से दर-ए-यार पे दस्तक दी है
मैं वो साहिल हूँ जिसे कोई सदा याद नहीं।

मैं ने जिन के लिये राहों में बिछया था लहू
हम से कहते हैं वही अहद-ए-वफ़ा याद नहीं । 

                                                                              सादर  आभार :साग़र सिद्दीकी
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17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्‍दर और सार्थक रचना आभार

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  2. raajendra राजेन्द्र भाई !निखार आया है आपकी गजलों में .क्या खूब गजल लिखी है आपने हर अश आर काबिले दाद है .ॐ शान्ति .४ ३ ,३ ० ९ ,सिलवरवुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन .

    Virendra Sharma ‏@Veerubhai194710m
    ram ram bhai मुखपृष्ठ शनिवार, 15 जून 2013 मुरली

    http://veerubhai1947.blogspot.com/
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  3. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (16-06-2013) के चर्चा मंच 1277 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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  4. मेरे दामन में शरारों के सिवा कुछ भी नहीं
    आप फूलों के ख़रीदार नज़र आते हैं-------
    सुंदर अभिव्यक्ति
    बहुत खूब

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  5. बहुत सुन्‍दर और सार्थक रचना आभार राजेंद्र जी।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति आभार . मगरमच्छ कितने पानी में ,संग सबके देखें हम भी . आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN "झुका दूं शीश अपना"

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  7. बैसे राउ धानी मै , दूषक करे प्रबंध ।
    गाँव गाँव गिरह घेरे, नगरी नगरी अंध । १ ।

    बीर बसे बिरानी मै , कायर बर जोध ।
    ज्ञानी गए पानीहि मै, भोंदु भए मह बोध । २ ।

    भावार्थ : -- शासक तो धानी में बैठ के रासलीला देख रहे हैं.....
    किसकी?..... कृष्ण बिहारी लाल की, औउर किसकी.....
    विधि-विधान का उलंघन करने वाले प्रबंध व्यवस्था कर
    रहे हैं । गाँव-गाँव में समस्याएँ व्याप्त हैं, नगरों में अंधेर नगरी छाई हुई है । 1 ।

    वीर तो वीरानों में जा बसे और कायर योद्धा बने हुवे हैं,
    ज्ञानियों की दुर्गति हो गई और 'भोंदू' महामानी बन रखे हैं । 2 ।

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  8. बहुत सुंदर गज़ल. सारे शेर एक से बढ़कर एक. बहुत बधाई राजेंद्र जी इस सुंदर गज़ल से रूबरू करने के लिये.

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  9. मेरे दामन में शरारों के सिवा कुछ भी नहीं
    आप फूलों के ख़रीदार नज़र आते हैं ...

    बहुत खूब ... लाजवाब है ये शेर .. मज़ा आया पूरी गज़ल का ...

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  10. बहुत सुन्दर रचना ....
    आशावाद का भाव जगाती ये पंक्तियां
    दूर तक कोई सितारा है न कोई जुगनू
    मर्ग-ए-उम्मीद के आसार नज़र आते है ।
    काबिल-ए-तारिफ है।

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  11. दूर तक कोई सितारा है न कोई जुगनू
    मर्ग-ए-उम्मीद के आसार नज़र आते हैं

    ...वाह! बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...

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  12. ख़ूबसूरत ग़ज़ल
    मेरे दामन में शरारों के सिवा कुछ भी नहीं
    आप फूलों के ख़रीदार नज़र आते हैं

    कल जिसे छू नहीं सकती थी फ़रिश्तों की नज़र
    आज वो रौनक़-ए-बाज़ार नज़र आते हैं

    जवाब देंहटाएं

आपकी मार्गदर्शन की आवश्यकता है,आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है, आपके कुछ शब्द रचनाकार के लिए अनमोल होते हैं,...आभार !!!