प्रचण्ड गर्मी
तन को झुलसाती
जीना मुहाल
आग लगाये
जेठ की दुपहरी
मन व्याकुल
प्यासे परिन्दे
गर्मी से अकुलाए
दाना न पानी
चुभती गर्मी
धूप की चिंगारियां
मार डालेगी
लम्बी डगर
छाया को तरसते
थके पथिक
सुनी गलियाँ
चिलचिलाती धूप
छाया सन्नाटा
चोंच को खोले
पानी को तरसते
बेचारे पंछी
खीरा ककड़ी
मन को ललचाये
दे शीतलता
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खूबसूरत प्रस्तुति व गर्मी में गरम हाइकू व उससे होती शीतल अनुभूति , वाह राजेंद्र भाई , धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आभार आशीष भाई
हटाएंबहुत सुंदर हायकू.
जवाब देंहटाएंधन्यबाद राजीव जी
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (20-05-2014) को "जिम्मेदारी निभाना होगा" (चर्चा मंच-1618) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
धन्यबाद आदरणीय
हटाएंमौसम की इस रचना और उम्दा प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@आप की जब थी जरुरत आपने धोखा दिया (नई ऑडियो रिकार्डिंग)
धन्यबाद महोदय
हटाएंवाह बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय
हटाएंआभार आपका
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर हायकू. !!
जवाब देंहटाएंगर्मी के सुंदर हाइकू।
जवाब देंहटाएंगर्मी के हाइकू चित्रों से और गर्म होगए हैं । लेकिन गर्मी की तीव्रता कम करने बाद में आपने कुछ शीतलता का अनुभव भी कराया है । बढिया ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया हाइकू , दमदार चित्र !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर गर्मी के हाइकू, सटीक प्रस्तुती।
जवाब देंहटाएंएक से एक सुन्दर हाइकू श्री राजेंद्र जी
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई.....
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