हमारे दुःख का एक कारण यह भी है कि हम दूसरों के सुखों से अपनी तुलना करते रहते है कि उसके पास ज्यादा है,मेरे पास कम है। जो हमें मिला है यदि उसी पर ध्यान हो तो दुखी नहीं होंगे क्योंकि दुःख तो तुलना से आता है,जब अपने से ज्यादा खुशहाल व्यक्ति से तुलना करोगे तो दुःख आएगा और अपने से नीचे व्यक्ति से अपनी तुलना करोगे तो अहंकार उभर कर आएगा कि 'मैं बड़ा हूँ' ! इसप्रकार ज़िन्दगी भर किसी न किसी से तुलना करके सुखी-दुखी होते रहते है। क्योंकि मन को दुःख की विलासिता भी बड़ी अच्छी लगती है इसलिए जान बूझकर मन दुःख को कहीं न कहीं से ढूंढ लाता है। और यही हमारे विकास का सबसे बड़ा रोड़ा बन जाता है हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम मन को बार-बार ऊँचे से ऊँचा विचार देते रहे और अपने को किसी कार्य में व्यस्त रखे क्योंकि खाली मन दुःख ही लेकर आता है। जब मन विचार सहित व्यस्त नहीं होता तब अस्त-व्यस्त हो जाता है।
आपने कई बार कुछ लोगों को ऐसा कहते
सुना होगा, 'मुझे अपने जीवन में न्याय नहीं मिला। मुझे भेदभाव का सामना करना पड़ा। मेरे आस पास ऐसे लोग हैं जिन्हें सब कुछ आसानी से मिल जाता है। कई लोगों को अपने जीवन में रत्ती भर भी दुख या कष्ट का सामना नहीं करना पड़ा। उन के पास बड़े-बड़े आलीशान मकान है और मैं एक छोटे से फ्लैट में रहता हूं। वह कोई ठोस काम भी नहीं करता, फिर भी उसे मुझसे ज्यादा तारीफ मिलती है।हमारा बहुत समय अक्सर दूसरों के साथ अपनी तुलना करने में ही निकल जाता है। क्या ऐसी तुलना सकरात्मक या फलदायी होती है? दोनों फलों के अपने गुण हैं। दोनों दो तरह के हैं। दोनों को एक ही तरह से नहीं आंका जा सकता। इसी तरह हर एक आत्मा अपने आप में एक अलग पहचान लिए होती है। हमारे कर्म पुरुषार्थ के साथ मिल कर तय करते हैं कि हमें क्या मिलता है और क्या नहीं मिलता। तुलना करना गलत नहीं है, यदि वह स्वस्थ तुलना है और हम किसी को हराने की मंशा से नहीं, अपनी कमियों पर विजय पाने के लिए करते हैं। लेकिन हम सकारात्मक तुलना कम करते हैं। जो हमारे पास है, उससे हम संतुष्ट नहीं हैं और वह सब कुछ पाना चाहते हैं जो दूसरों के पास है। पद, प्रतिष्ठा, संपत्ति या कुछ और जिससे हम समझते हैं कि हमें खुशी मिल सकती है। दूसरों से अपनी तुलना हममें ईर्ष्या और असुरक्षा ही पैदा करती है। इसी संदर्भ में अब एक कहानी पर विचार करते हैं ……
एक राजा बहुत दिनों बाद अपने बागीचे में सैर करने गया , पर वहां पहुँच उसने देखा कि सारे पेड़- पौधे मुरझाए हुए हैं । राजा बहुत चिंतित हुआ, उसने इसकी वजह जानने के सभी पेड़-पौधों से एक-एक करके सवाल पूछने लगा।
ओक वृक्ष ने कहा, वह मर रहा है क्योंकि वह देवदार जितना लंबा नहीं है। राजा ने देवदार की और देखा तो उसके भी कंधे झुके हुए थे क्योंकि वह अंगूर लता की भांति फल पैदा नहीं कर सकता था। अंगूर लता इसलिए मरी जा रही थी की वह गुलाब की तरह खिल नहीं पाती थी।
राजा थोडा आगे गया तो उसे एक पेड़ नजर आया जो निश्चिंत था, खिला हुआ था और ताजगी में नहाया हुआ था।
राजा ने उससे पूछा , ” बड़ी अजीब बात है , मैं पूरे बाग़ में घूम चुका लेकिन एक से बढ़कर एक ताकतवर और बड़े पेड़ दुखी हुई बैठे हैं लेकिन तुम इतने प्रसन्न नज़र आ रहे हो…. ऐसा कैसे संभव है ?”
पेड़ बोला , ” महाराज , बाकी पेड़ अपनी विशेषता देखने की बजाये स्वयं की दूसरों से तुलना कर दुखी हैं , जबकि मैंने यह मान लिया है कि जब आपने मुझे रोपित कराया होगा तो आप यही चाहते थे कि मैं अपने गुणों से इस बागीचे को सुन्दर बनाऊं , यदि आप इस स्थान पर ओक , अंगूर या गुलाब चाहते तो उन्हें लगवाते !! इसीलिए मैं किसी और की तरह बनने की बजाय अपनी क्षमता केअनुसार श्रेष्ठतम बनने का प्रयास करता हूँ और प्रसन्न रहता हूँ । “
कहने का तात्पर्य है की हमेशा अपने गुणों, अपनी योग्यताओ पर ध्यान केन्द्रित करे। यह जान ले, आप जितना समझते है, आप उससे कही बेहतर है। बड़ी सफलता उन्ही लोगो का दरवाजा खटखटाती है जो लगातार खुद के सामने उचे लक्ष्य रखते है, जो अपनी कार्यक्षमता सुधारना चाहते है।
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बहुत सही आकलन सुंदर पोस्ट ।
जवाब देंहटाएंजीवन जीने की भी दो ही तरीके हैं या तो अपनी पसंद की चीज़ हासिल करो और जब तक हासिल न हो प्रयास करते रहो या फिर जो हासिल है उसे पसंद करो।
जवाब देंहटाएंझुको ,झकते वाही हैं जिनमें जान होती है ,
अकड़ तो मुर्दे की पहचान होती है। शुक्रिया भाई साहब आपकी टिप्पणियों का।
शिक्षा प्रद पोस्ट और सुन्दर स्तुति !!
जवाब देंहटाएंमहाराज , बाकी पेड़ अपनी विशेषता देखने की बजाये स्वयं की दूसरों से तुलना कर दुखी हैं , जबकि मैंने यह मान लिया है कि जब आपने मुझे रोपित कराया होगा तो आप यही चाहते थे कि मैं अपने गुणों से इस बागीचे को सुन्दर बनाऊं , यदि आप इस स्थान पर ओक , अंगूर या गुलाब चाहते तो उन्हें लगवाते !! इसीलिए मैं किसी और की तरह बनने की बजाय अपनी क्षमता केअनुसार श्रेष्ठतम बनने का प्रयास करता हूँ और प्रसन्न रहता हूँ ।
जवाब देंहटाएंये सही बात है ! इंसान की प्रवृत्ति ऐसी ही होती है की अपने गुणों को दरकिनार करके दूसरों से तुलना करने लग जाता है ! बहुत ही प्रेरणादायक लेखन श्री राजेंद्र जी
लोग अपने गुण -अवगुण से ज़्यादा दूसरों के बारे में जानते हैं...दुःख के सही कारन की ओर इंगित करता सामयिक लेख... बधाई...
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने ! इंसान का स्वभाव है की 'उसकी कमिज़ मेरे कमिज़ से सफेद क्यो है ? यही सोचकर इंसान जिंडगीभर दुखी होता रहता है .सुंदर प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया विवेचना ! मंगलकामनाएं आपको !
जवाब देंहटाएंसुन्दर वृत्तांत के साथ सकारात्मक बात कही -तुलना न कही न जाए ,तुलना करी न जाए ,…।
जवाब देंहटाएंसार्थक लेख. आभार!
जवाब देंहटाएंright
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