ऐसे बेबस यों बेकरार है हम,
जिन्दगी तेरे गुनाहगार ही हम।
जो भी आया किनारा कर गया,
और किनारों से दरकिनार है हम।
दिन जो गुजरे वो कदर याद आये,
अपने अतीत की ही मजार है हम।
गुजरी हर हद से उनकी बेदर्दी,
अब तो बेचैन औ जार-जार है हम।
इतनी बेमानी है जिन्दगी ऐ"राज",
अक्स पर ही अपने शर्मसार है हम।
वह क्या ग़ज़ल है,उम्दा शेरी की प्रस्तुति.
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