मंगलवार, 27 नवंबर 2012

गम में डूबे लोग-गज़ल

 
गम में डूबे से बेवाक नजर आने लगे है  लोग,
अपने में खोए अंजान नजर आने लगे है लोग।
          आज हर लम्हा बिखरने लगा ख्वाबो की तरह,
          क्यों बदलने लगे अपने लोग भी गैरो की तरह।
सच की निगाहों से कतराने लगे है लोग,
गम में डुबे से बेवाक नजर आने लगे है लोग।
          रुख यू बदलने लगे हर शख्स हवाओ की तरह,
            फरेब करने  लगा हर शख्स हवाओ की तरह।
घर बार छोड़ चौराहे पर आने लगे है लोग,
गम में डूबे बेवाक नजर आने लगे है लोग।
            जिन्दगी गुजरने  लगी दिन  की बुँदे  बनकर,
             आदमी सवरने लगा  अपने  में ही खो    कर।
अपने ही आप क्यों बहकने लगे है सारे लोग,
गम में डूबे बेवाक नजर आने  लगे हैं  लोग।
             इन्सान क्यों बनने लगा   मशीनों  की तरह,
             रंग में धूमिल हुए आज ये रिश्ते भी तमाम।
जिन्दगी इस तरह क्यों बोझ बनाने "राज",
गम में डुबे बेवाक नजर आने लगे हैं लोग।
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3 टिप्‍पणियां:

  1. गम में डूबने के बाद क्या अच्छा क्या बुरा कुछ सूझता नहीं,उत्कृष्ट रचना।

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  2. बहुत ही सुंदर अव सार्थक ग़ज़ल ,अतिसुन्दर।

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