सोचा था कि अब चला गया हवाओं की तरह,
गम दुसरे दिन फिर आ गया दीवानों की तरह।
पत्थर से इन्सान के रिश्ते होते है बड़े अजीब ,
ठोकर किसी ने मारी कोई जल चढ़ा कर गया।
आया तो ऐसा आया नदियों में सैलाबों की तरह,
गया तो ऐसा गया जंगल की दनावल की तरह।
सोचा था आएगा बिखरे चमन को बसाने के लिए,
पर आया भी तो लहरों से झोपडी उड़ाने के लिए।
सोचा की कट जाएगी जिन्दगी भवरों की तरह,
गम दुसरे दिन फिर आ गया दीवानों की तरह।
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.बहुत सुन्दर ...बधाई .
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुतीकरण.
जवाब देंहटाएंBas aisi hi hai jindagi...Gum..rishtey ..... Lajawaab abhivyakti .....badhayi
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