बीते हुए पल को याद कर रोना अच्छा लगता है,
हम भी यादों में पागल हो जायेंगे ऐसा लगता है।
हसीन पलों की यादें रोज ही मिलने आती है,
अँधेरे दिलो में अब तो ख्वाबो का मेला लगता है।
प्यार के दो ... मीठे बोल के तरसते हुए दिल को,
अपने आँसूं के बूंदे ... ही अब समन्दर लगता है।
किसको अपना कहूँ कौन इस दुनियाँ में पराया,
गम-ए-सार दिल में तो अभी एक चेहरा अपना है।
कभी कभी तेरी यादों के सावली रातों ......... में,
बहते अश्को का ही समन्दर ..... नजर आता है।
"राज" दुनियाँ में चुप ही रहे तो बेहतर है,
राई से पहाड़ बनाना तो लोगो की फितरत है।
गुल-ए-चमन में जाग कर रात-रात भर .........,
बीते हुए पल को याद कर रोना अच्छा लगता है।
हम भी यादों में पागल हो जायेंगे ऐसा लगता है।
हसीन पलों की यादें रोज ही मिलने आती है,
अँधेरे दिलो में अब तो ख्वाबो का मेला लगता है।
प्यार के दो ... मीठे बोल के तरसते हुए दिल को,
अपने आँसूं के बूंदे ... ही अब समन्दर लगता है।
किसको अपना कहूँ कौन इस दुनियाँ में पराया,
गम-ए-सार दिल में तो अभी एक चेहरा अपना है।
कभी कभी तेरी यादों के सावली रातों ......... में,
बहते अश्को का ही समन्दर ..... नजर आता है।
"राज" दुनियाँ में चुप ही रहे तो बेहतर है,
राई से पहाड़ बनाना तो लोगो की फितरत है।
गुल-ए-चमन में जाग कर रात-रात भर .........,
बीते हुए पल को याद कर रोना अच्छा लगता है।
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जाता हुँ तो सबके ब्लाँग पर लेकिन आपके ब्लाँग पर आना अच्छा लगता हैँ
जवाब देंहटाएंयु आकर टिप्पणी करना अच्छा लगता हैँ
आपके भुले बिसरे यादो को पढकर अपनेँ यादोँ मे खोना अच्छा लगता हैँ ....
अश्क को दबाकर रखने के बजाऐँ खुलकर रो लेना अच्छा लगता हैँ ......।
ये तो आपका बडप्पन है।
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंवरिष्ठ गणतन्त्रदिवस की अग्रिम शुभकामनाएँ और नेता जी सुभाष को नमन!
सादर आभार मान्यवर।
हटाएंबहुत खुब
जवाब देंहटाएंआभार.
हटाएंमोबाईल वर्ल्ड : Which can run mobile device enabling the Free Inter...: कौन सा मोबाइल उपकरण चला सकते हैँ फ्री इन्टरनेट फ्री इन्टरनेट मोबाइल से चलाने की बात करे तो सबसे पहला ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया है-
जवाब देंहटाएंदर्द दरदरा देखता, दरपन मध्य दरार |
दिल दुखवा कासे कहूँ, कैसे बीच बजार |
शुभकामनायें राजेन्द्र जी ||
सादर आभार मान्यवर।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़ियाँ रचना...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...
:-)
बहुत उम्दा गजल ,,,, राजेन्द्र जी,बधाई शुभकामनायें,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: गुलामी का असर,,,
अच्छी रचना!
जवाब देंहटाएंपंकज उदास जी की ग़ज़ल याद आ गयी...
'दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है...
हम भी पागल हो जाएँगे.... ऐसा लगता है...'
~सादर!!!
पंकज उदास जी का मैं कद्रदान हूँ,उन्ही हे प्रेरित है यह ग़ज़ल,सादर आभार आपका।
हटाएंसुंदर गजल | आपके ब्लॉग को यहाँ शामिल कर लिया गया है- ब्लॉग"दीप"
जवाब देंहटाएंसादर आभार आपका।
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति,आपको भी गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंsundar gazal.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना,मन भावाकुल हो रहा है।
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