ठीक है, तुम खूब शरारतें करो,
दीवारों और ऊंचे वृक्षों पर चढो,
अपनी साइकलों को जिधर चाहो घुमाओ-फिराओ,
तुम्हारे लिए यह जानना अनिवार्य है
कि तुम इस काली धरती पर
किस प्रकार बना सकते हो अपना स्वर्ग
तुम चुप कर दो उस व्यक्ति को
जो तुम्हें पढाता है कि यह सृष्टि
आदम से प्रारम्भ हुई
तुम्हें धरती के महत्त्व को स्वीकारना है.
तुम्हें विश्वास करना है कि धरती शाश्वत है.
अपनी माँ और धरती माँ में कभी भेद मत करना
इस से उतना ही प्यार करना
जितना अपनी माँ से करते हो.
चलते चलते......
चादर पर इंसानियत की गहरा दाग लगाया है
जिसकी दवा मुमकिन ही नहीं वह ज़ख्म जहां से पाया है
आभार - नाज़िम हिकमत
चलते चलते......
चादर पर इंसानियत की गहरा दाग लगाया है
जिसकी दवा मुमकिन ही नहीं वह ज़ख्म जहां से पाया है
आभार - नाज़िम हिकमत
Place Your Ad Code Here
बहुत खूब :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बात कही है आपने! बधाई भाई जी इस सुन्दर रचना के लिए।
जवाब देंहटाएंमां और धरती की तुलना सार्थक। पर दुःख इस बात का है आधुनिकता में बहता समाज मां के साथ भी और धरती के साथ भी अन्याय कर रहा है। ऐसे में आपकी कविता पाठकों को जागृत करेगी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति..... मैं धरती हूँ .
जवाब देंहटाएंbahut khoob......kash sab aisa soochte...tho aaj hamari dharti kitni khushal hoti
जवाब देंहटाएंधरती तो माँ ही होती है ... वो हमें पालती है ओर बदले में कुछ नहीं मांगती ...
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुति ..
सटीक और सार्थक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.
जवाब देंहटाएंधरती हमारी माँ हैं,बहुत ही सुन्दर कविता का सृजन.
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सटीक रचना की प्रस्तुति,शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन कविता की रचना,धन्यबाद.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बोधकारी कविता....आभार.
जवाब देंहटाएंभाई वाह...बहुत ही सुन्दर.
जवाब देंहटाएंसच में धरती हमारी माँ के समान ही हैं,सुन्दर कविता.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार के "रेवडियाँ ले लो रेवडियाँ" (चर्चा मंच-1230) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
माँ और धरती माँ का अच्छा महात्म बताया
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रसूति !
जवाब देंहटाएंमाँ तो बस माँ ही है यह धरती माँ भी तो माँ की तरह ही तो पोषण करती है ...
जवाब देंहटाएंबिलकुल..माँ जैसे आदर की ज़रुरत है....
जवाब देंहटाएं