
दुल्हन नाबालिग है मगर समाज के रस्म और रिवाज के हिसाब से शादी के लायक हो चुकी है. भले शादी उसकी मर्ज़ी से हो या मर्जी के खिलाफ. उसे तो समाज की मर्ज़ी के हिसाब से चलना है। ये प्रथा कई साल से चली आ रही है और समाज को लगता है कि लड़कियों की शादी जल्द ही हो जानी चाहिए। इस तरह की शादियों की वजह से अब ज़्यादातर लड़कियां मानसिक रोगी हो गई हैं. वो घुट घुट कर जीने को मजबूर हैं। "शादी के बाद इनका साथ सिर्फ चंद दिनों का ही होता है. फिर लड़का खाड़ी देश अपनी नौकरी पर चला जाता है और फिर वो कब आएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है. दो सालों के बाद आएगा भी तो सिर्फ पंद्रह दिनों या एक महीने के लिए।"
समाज में पुरानी प्रथा चली आ रही है कि पंद्रह साल की होते होते ही लड़कियों की शादी कर दी जाए. समाज सोचता है कि पंद्रह साल की उम्र से ज्यादा होने पर लड़की के लिए दूल्हा मिलना मुश्किल हो जाता है। खाड़ी में काम करने वाले युवक यहां की पहली पसंद हैं. यानी ये सबसे योग्य वर समझे जाते हैं. अपने देश या अपने राज्य में नौकरी करने वाले उनसे कमतर माने जाते हैं. माना जाता है कि खाड़ी देश में काम करने वाले ज्यादा पैसे कमाते हैं. इसलिए इनकी मांग ज्यादा है।बदलते ज़माने के साथ ये प्रथा समाज के लिए एक बड़ी समस्या बनती जा रही है क्योंकि ऐसी लड़कियां अब मानसिक रोगी हो रही हैं। कई बार देखने में आया है की शादी के बाद जो पैसा दहेज़ के रूप में दिया गया उसे लेकर उसका पति खाड़ी के किसी देश नौकरी के लिए चला गया. फिर उसने संपर्क ही ख़त्म कर दिया। ये अपना दुख ना तो किसी को बता सकती हैं और ना ही समाज से कोई शिकायत ही कर सकती हैं. आज ये मानसिक रोगियों का जीवन जीने को मजबूर हो गई हैं।
दरअसल कम उम्र में खाड़ी देशों में काम करने वाले युवकों से शादी के बाद वो अब अकेली रह गई हैं. इस तन्हाई और अकेलेपन ने इनको मानसिक रूप से तोड़ दिया है और ये समस्या अब समाज के साथ साथ केरल की सरकार के लिए भी चिंता का विषय बन गई है।“सबसे बड़ी समस्या है कम उम्र में लड़कियों की शादी कराने की प्रथा. वो जल्दी माँ बन जाती हैं और पति से दूर रहते रहते हुए उनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं रहती. मानसिक रोग कई समस्याओं की जननी है.” "इनकी त्रासदी है कि सुहागिन होते हुए भी वो विधवाओं जैसा जीवन जीने पर मजबूर हैं. पति का इंतज़ार करना इनकी नियति है. और अपने अरमानों का गला घोटना इनका कर्त्तव्य."
इस तरह की शादियों के कई और पहलू भी है. वो लड़के, जो अपनी पूरी ज़िंदगी खाड़ी के देशों में मेहनत कर बिता देते हैं ताकि उनका परिवार सुखी रहे, वो ज़िन्दगी के अगले पड़ाव में अपने आपको अकेला महसूस करने लगते हैं.परिवार से दूर रहने की वजह से परिवार के लोगों का उनसे उतना भावनात्मक जुडाव नहीं रहता. उन्हें लगता है कि वो बस पैसे कमाने की एक मशीन भर बन कर रह गए हैं. “कमाने के लिए बहार गए. रात दिन मेहनत की. दूर रहकर पैसे इकठ्ठा किए. दूर रहने से क्या हुआ. ये हुआ कि हमारे लिए किसी की कोई भावना नहीं है. हम साथ नहीं रहे ना. अब ना बीवी पहचानती है न बच्चे.”
थक गए हम उनका इंतज़ार करते-करते;
रोए हज़ार बार खुद से तकरार करते-करते;
दो शब्द उनकी ज़ुबान से निकल जाते कभी;
और टूट गए हम एक तरफ़ा प्यार करते-करते।
"मेरे प्रियतम, तुम बाहर जाना चाहते हो और तुम्हारा रास्ता कठिन और दूर है। आज जाने के बाद तुम कब वापिस आओगे, जाने से पहले मुझे एक वचन दो, और मैं तुम्हारे लौटने का इंतजार करूंगी।"
कुछ अंश बी बी सी से साभार
राजेंद्र कुमार, आबू धाबी