आ समन्दर के किनारे पथिक प्यासा रह गया,
था गरल से जल भरा होकर रुआंसा रह गया।
था सफर बाकि बहुत मजिल अभी भी दूर थी,
हो गया बढना कठिन घिर कर कुहासा रह गया।
लग रहे नारे हजारो छप रही रोज लाखो खबर,
गौर से जब देखा तो बन तमाशा रह गया।
एक बुत गढ ने लगी अनजान में ही मगर,
हादसा ऐसा हुआ की वह बिन तराशा रह गया।
छोड़ कर आशा किसी का चल पड़ा बेचारा"राज",
आज वादा लोगो का बस दिलासा रह गया।
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एक बुत गढ ने लगी अनजान में ही मगर,
जवाब देंहटाएंहादसा ऐसा हुआ की वह बिन तराशा रह गया।
वाह ! बहुत सुंदर सृजन...!
RECENT POST - पुरानी होली.
आदरणीय सर , बहुत ही सुंदर व गहरी कृति , धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसर्च इंजन क्या है ? { What is search engine ? }
बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 08/03/2014 को "जादू है आवाज में":चर्चा मंच :चर्चा अंक :1545 पर.
बहुत ही भावपूर्ण गजल....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति। । होली की हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंलग रहे नारे हजारो छप रही रोज लाखो खबर,
जवाब देंहटाएंगौर से जब देखा तो बन तमाशा रह गया।..................आज वादा लोगों का बस दिलासा रह गया। सामयिक उथल-पुथल के बाद एकान्त आदमी के मन की छटपटाहट को बखूबी उकेरा है।
वाह बहुत सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंतन्हाई का क्या खूब नक्शा लगता है।
जवाब देंहटाएंछोड़ कर आशा किसी का चल पड़ा बेचारा"राज",
जवाब देंहटाएंआज वादा लोगो का बस दिलासा रह गया।
सुंदर वर्णन ............
बहुत ही भावपूर्ण गजल,सुंदर वर्णन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंगहन संवेदना भरी प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंbaht hi behtreen...
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