तूफां से डरकर लहरों के बीच सकारे कहाँ जाएँ,
इस जहाँ में भटककर तकदीर के मारे कहाँ जाएँ ।
अब तो खिंजा भी गुल खिलाने लगे है,
अपनी बेबसी को लेकर बहारें कहाँ जाएँ।
उम्मीदे थी जिसकी चाहत का ...........हमेशा,
हम तुमसे छुड़ाकर दामन बेसहारे कहाँ जाएँ।
उजाला हैं जहाँ में ऐ चाँद तेरी चांदनी से,
बता फलक के अभागे सितारे कहाँ जाएँ।
नाम था लबों पे खुद के बाद तुम्हारा ऐ हंसी,
तुम्हारे नाम का वो जहां के लुटेरे कहाँ जाएँ।
हंसी मंजर था चाहत के लम्हे गुजरा था ऐ "राज"
सिसक-सिसक कर वो रंगीन नजारें कहाँ जाएँ।
जब नाव जल में छोड़ दी तूफ़ान में ही मोड़ दी,
दे दी चुनौती सिन्धु को तो धार क्या मझधार क्या !
(सादर आभार)
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सुन्दर शब्द चयन और अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंआशा
उम्मीदे थी जिसकी चाहत का ...........हमेशा,
जवाब देंहटाएंहम तुमसे छुड़ाकर दामन बेसहारे कहाँ जाएँ।
Very beautiful...
wahhh....bahut umda...
जवाब देंहटाएंसधी हुई गजल-
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आदरणीय ||
सुन्दर गजल,बहुत बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंउजाला हैं जहाँ में ऐ चाँद तेरी चांदनी से,
जवाब देंहटाएंबता फलक के अभागे सितारे कहाँ जाएँ ...
वाह क्या बात है ... सच कहा है चाँद इतनी तेज रौशनी ले के आता है की सितारे नज़र नहीं आते ... खो जाते हैं उसके अस्तित्व के आगे ...
अब तो खिंजा भी गुल खिलाने लगे है,
जवाब देंहटाएंअपनी बेबसी को लेकर बहारें कहाँ जाएँ
बहुत ही लाजवाब, शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत ही सुन्दर एवं प्यारी गज़ल की प्रस्तुति.धन्यबाद.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर गज़ल,सुन्दर शब्द.
जवाब देंहटाएंJhakkas,bahut hi sundar Ghazal,Thanks.
जवाब देंहटाएंइस ग़ज़ल का जबाब नही,बहुत ही सुन्दरतम ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंसुन्दर ग़ज़ल राजेंद्र जी | बधाई
जवाब देंहटाएंउम्मीदे थी जिसकी चाहत का .....हमेशा,
जवाब देंहटाएंहम तुमसे छुड़ाकर दामन बेसहारे कहाँ जाएँ।
बहुत ही सुन्दर गज़ल
बहुत ही सुंदर सार्थक प्रस्तुती।
जवाब देंहटाएंइस सुंदर ग़ज़ल की तारीफ में क्या कहना,अतिसुन्दर।
जवाब देंहटाएंआपकी गज़ल पढ़ के एक पुराना गाना याद आ गया ..
जवाब देंहटाएंभरी दुनिया में आखिर दिल को समझाने कहाँ जाएँ , मुहब्बत हो गयी जिनको वो दीवाने कहाँ जाएँ!
बहुत खूब लिखा है राजेन्द्र जी!
Bahut hi badhiyan prstuti,sundar.
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है! बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई आपको बढ़िया ग़ज़ल लिखी है
जवाब देंहटाएंतूफां से डरकर लहरों के बीच सकारे कहाँ जाएँ,
जवाब देंहटाएंइस जहाँ में भटककर तकदीर के मारे कहाँ जाएँ ।
बहुत ही सुंदर गज़ल.
वाह, लाजवाब
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति
बेहद की सवालिया रवानी लिए है यह रचना .
जवाब देंहटाएंकविता के भाव एवं शब्द का समावेश बहुत ही प्रशंसनीय है
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह
बहुत खूब राजेन्द्रजी
जवाब देंहटाएं...बढ़िया अभिव्यक्ति.... आपको धन्यवाद ............
जवाब देंहटाएंआप भी पधारो आपका स्वागत है ....pankajkrsah.blogspot.com
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपकी टिपण्णी का इस खूबसूरत मुख्तलिफ बयानी का .
सुन्दर भाव अभिवयक्ति है आपकी इस रचना में लेकिन क्षमा सहित कहूँगा कि शिल्पगत बहुत सी कमियाँ भी है इस रचना में ,माफ़ी चाहूँगा कृपया अन्यथा ना ल.सादर वन्दे...
जवाब देंहटाएंवाह.....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ग़ज़ल..
सुन्दर भाव,
अनु
बहुत अच्छी नज्म, राजेन्द्र जी ब्लॉग जगत में आप हिट पर हिट दे रहे हैं। मुबारक।
जवाब देंहटाएंआपकी कविता आपकी रचना निर्झर टाइम्स पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें http://nirjhar-times.blogspot.com और अपने सुझाव दें।
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