प्रिय मित्रों आज आप लोगो के सामने एक भोजपुरी लोक कथा प्रस्तुत कर रहा हूँ,कृपया इसे निजी तौर पर न लें।
बहुत पहले खेतों में चावल बोया जाता था और चावल ही काटा जाता
था। सोचिये , कितना अच्छा था वह समय, जब ना धान पीटना पड़ता था और ना ही
चावल के लिए उसकी कुटाई ही करनी पड़ती थी। खेत में चावल बो दिया और जब चावल पक गया
तो काटकर, पीटकर उसे देहरी (अनाज रखने का मिट्टी का पात्र) में रख दिया।
तो आइए कहानी शुरु करते हैं; चावल से धान बनने की।
एक बार
ब्राह्मण टोला के ब्राह्मणों को एक दूर गाँव से भोज के लिए निमंत्रण
आया। ब्राह्मण लोग बहुत प्रसन्न हुए और जल्दी-जल्दी दौड़-भागकर उस गाँव में पहुँच
गए। हाँ तो यहाँ आप पूछ सकते हैं कि दौड़-भागकर क्यों गए। अरे भाई साहब, अगर
भोजन समाप्त हो गया तो और वैसे भी यह कहावत ‘एक बोलावे चौदह धावे’ ब्राह्मण
की भोजन-प्रियता के लिए ही सृजित की गई थी (है)। बिना घुमाव-फिराव के सीधी बात पर
आते हैं। वहाँ ब्राह्मणों ने जमकर भोजन का आनन्द उठाया। पेट फाड़कर खाया, टूटे थे
जो कई महीनों के। भोजन करने के बाद ब्राह्मण लोग अपने घर की ओर प्रस्थान किए।
पैदल
चले,डाड़-मेड़ से होकर क्योंकि सवारी तो थी नहीं। रास्ते में चावल
के खेत लहलहा रहे थे। ब्राह्मण देवों ने आव देखा ना ताव और टूट पड़े चावल पर। हाथ
से चावल सुरुकते (बाल से अलग करते) और मुँह में डाल लेते। उसी रास्ते से शिव व
पार्वती भी जा रहे थे । यह दानवपना (ब्राह्मणपना) माँ पार्वती से देखा नहीं गया और
उन्होंने शिवजी से कहा, ”देखिए न, ये ब्राह्मण लोग भोज खाकर आ रहे हैं फिर भी कच्चे चावल चबा रहे
हैं।” शिवजी ने माँ पार्वती की बात अनसुनी कर दी। माँ पार्वती ने
सोचा, मैं ही कुछ करती हूँ और सोच-विचार के बाद उन्होंने शाप दिया कि
चावल के ऊपर छिलका हो जाए।
तभी
से खेतों में चावल नहीं धान उगने लगे। धन्य हे ब्राह्मण देवता।
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बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपका सादर अभिनन्दन गुरुवर.
हटाएंअच्छी कहानी है मित्र पहले कभी सुनी नहीं थी. आज पढ़ने में अच्छी लगी सादर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कहानी को शेयर किये ,आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक कहानी से परिचय कराए,आभार।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लोक-कथा,धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंवाह ... अच्छी कहानी .. लोक कथाओं का अपना अलग ही महत्त्व है ...
जवाब देंहटाएंप्यारा लोककथा,बहुत ही सुन्दर.
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंनई लोककथा मालूम हुआ,अनजान था भाई,धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर लोककथा :>
जवाब देंहटाएंSundar lok katha,Thank you.
जवाब देंहटाएंsab thik hai. bas aapne jyada jod dalkar apne brahman virodhi bhavna ko dikhya. waise meri ma ne mujhe ye kahani sunai thi.
जवाब देंहटाएंक्षमा करें मिश्रा जी,मैंने पहले ही लिखा था इसे निजी तौर पर न लें.ये कहानी तो मेरी मौलिक रचना है नही हजारों सालो से लोक-कथा के रूप में प्रचलित है.जहाँ तक विरोधी भावना का सवाल है मेरे लिए ब्राह्मण आदरणीय हैं.
हटाएंबहुत उम्दा .
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना
ये कैसी मोहब्बत है
खुशबू
बहुत रोचक कहानी...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
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