खफा-ए -जिन्दगी को भुला कर के तो देखिए ,
ख्वाबो की दुनियाँ से निकल कर के तो देखिए ।
तेरी यादों के ही सहारे जी रहें हैं अब तलक,
दिल के झरोंखे में कोई दीप जला कर के देखिए।
हम समझ न पाए अब तक आपकी रुसवाई को,
नस्तरे दिल से अपना इल्जाम हटा के तो देखिए।
दस्ताने-ए-दिल को मेरी जुबां से सुना ही नही,
तिलिस्मे बेहिसी को कभी तोड़ के तो देखिए।
दर्दे-दिल को सहते हुए कितने सदियाँ गुजर गयी,
अपने माजी के मजार पर कभी आ कर के देखिए।
लगता अब उतर जायेंगे लहद में अहबाब के कांधों से,
रब के दर पर मेरे गुनाहों की सजा सुना कर तो देखिये।
अर्थ: तिलिस्मे =भवंर जाल, माजी=अतीत, मजार =कब्र, लहद=कब्र, अहबाब=मित्र जन
चलते चलते प्रस्तुत है:
करोगे याद गुजरे हसीन यादों को,
तरसोगे हमारे साथ एक पल बिताने को।
फिर आवाज दोगे हमें बुलाने को,
नहीं दरवाजा होगा स्वर्ग से वापस आने का।।
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दर्दे-दिल को सहते हुए कितने सदियाँ गुजर गयी,
जवाब देंहटाएंअपने माजी के मजार पर कभी आ कर के देखिए।
खूबसूरत पंक्तियाँ .....
आपका आभार .....
सदर आभार.
हटाएंbehatareen gazal, दर्दे-दिल को सहते हुए कितने सदियाँ गुजर गयी,
जवाब देंहटाएंअपने माजी के मजार पर कभी आ कर के देखिए।
तेरी यादों के ही सहारे जी रहें हैं अब तलक,
जवाब देंहटाएंदिल के झरोंखे में कोई दीप जला कर के देखिए। ..
बहुत खूब ... दिल के दीप जगमगाएंगे तो सब कुछ साफ़ नज़र आएगा ....
लाजवाब गज़ल है ...
kya bat hai behad khoobsurat..
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत अलफ़ाज़...
जवाब देंहटाएंदर्दे-दिल को सहते हुए कितने सदियाँ गुजर गयी,
अपने माजी के मजार पर कभी आ कर के देखिए।
दाद स्वीकारें.
बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको
जवाब देंहटाएंलगता अब उतर जायेंगे लहद में अहबाब के कांधों से,
जवाब देंहटाएंरब के दर पर मेरे गुनाहों की सजा सुना कर तो देखिये। बहुत बढ़िया इन अंतिम पंक्तियों ने समा बांध दिया।
BEST GHAZAL ....THANKS.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर ग़ज़ल,धन्यबाद है आपको.
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा प्रस्तुति,प्रशंसनीय.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत हैं सब अशआर गजल के .
जवाब देंहटाएंदस्ताने-ए-दिल को मेरी जुबां से सुना ही नही,
तिलिस्मे बेहिसी को कभी तोड़ के तो देखिए।
दास्ताने दिल को मिरी (मेरी )जुबां से सूना ही नहीं .........बढ़िया प्रयोग है ...दस्ताने -ए -
दिल ?
आभार.
हटाएंBahut hi sundar ghazal,atisundar,
जवाब देंहटाएंदर्दे-दिल को सहते हुए कितने सदियाँ गुजर गयी,
जवाब देंहटाएंअपने माजी के मजार पर कभी आ कर के देखिए।
बहुत ही उम्दा प्रस्तुति
बेहतरीन ग़ज़ल,आभार।
जवाब देंहटाएंलगता अब उतर जायेंगे लहद में अहबाब के कांधों से,
जवाब देंहटाएंरब के दर पर मेरे गुनाहों की सजा सुना कर तो देखिये।
बहुत खूबसूरत अलफ़ाज़...
बेहतरीन भाव और सुन्दर प्रस्तुती।
जवाब देंहटाएंbehad khubsoorat gazal
जवाब देंहटाएंआपका सादर आभार.
जवाब देंहटाएंधन्यबाद तुषार जी.
जवाब देंहटाएंआप सभी को सादर अभिनन्दन और आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब आपके भावो का एक दम सटीक आकलन करती रचना
जवाब देंहटाएंआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
तुम मुझ पर ऐतबार करो ।
मर्मस्पर्शी ग़ज़ल..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया है आदरणीय राजेन्द्र जी-
जवाब देंहटाएंकल शहर से बाहर था-
सादर |
दिल से निकली ग़ज़ल। आभार।
जवाब देंहटाएंनये लेख :- समाचार : दो सौ साल पुरानी किताब और मनहूस आईना।
एक नया ब्लॉग एग्रीगेटर (संकलक) : ब्लॉगवार्ता।
waahhhh... bahut behtreen
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