हम बहुत सी परम्पराओं, अंधविश्वासों को बिना कुछ विचार किये ज्यों का त्यों स्वीकार कर लेते हैं. यह भी नहीं देखते कि आज के परिपेक्ष्य में इसकी कोई प्रासंगिकता है भी या नहीं इसके पीछे कोई तर्क संगत आधार है कि नहीं. कहीं अंधविश्वास का तो हम अनुपालन नहीं कर रहे हैं. हमारी बहुत सी मान्यताएं विज्ञान / आधुनिक ज्ञान की कसौटी पर खरी नहीं उतरती हैं.यह हमारी बेड़ियाँ बन जाती हैं. समाज के विकास और प्रगति के लिए इन बेड़ियों को तोड़ देना ही बेहतर होगा. एक गतिशील समाज को अपनी मान्यताओं / परम्पराओं की सार्थकता पर निरंतर विचार करते रहना चाहिए. जो मान्यताएं समय के अनुरूप हों, समाज की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करती हों, उन्हें ही स्वीकृति मिलनी चाहिए आधारहीन परम्पराएं किस प्रकार अंधविश्वास का रूप ले लेती हैं।
इसी सन्दर्भ में एक प्राचीन कहानी को देखते हैं।
एक फकीर किसी बंजारे की सेवा से बहुत प्रसन्न हो गया। और उस बंजारे को उसने एक गधा भेंट किया। बंजारा बड़ा प्रसन्न था।
गधे के साथ, अब उसे यात्रा न करनी पड़ती थी। सामान भी अपने कंधे पर न ढोना पड़ता था। और गधा बड़ा स्वामीभक्त था।
लेकिन एक यात्रा पर गधा अचानक बीमार पडा और मर गया। दुःख में उसने उसकी कब्र बनायी, और कब्र के पास बैठकर रो रहा था कि एक राहगीर गुजरा।
गधे के साथ, अब उसे यात्रा न करनी पड़ती थी। सामान भी अपने कंधे पर न ढोना पड़ता था। और गधा बड़ा स्वामीभक्त था।
लेकिन एक यात्रा पर गधा अचानक बीमार पडा और मर गया। दुःख में उसने उसकी कब्र बनायी, और कब्र के पास बैठकर रो रहा था कि एक राहगीर गुजरा।
उस राहगीर ने सोचा कि जरूर किसी महान आत्मा की मृत्यु हो गयी है। तो वह भी झुका कब्र के पास। इसके पहले कि बंजारा कुछ कहे, उसने कुछ रूपये कब्र पर चढ़ाये। बंजारे को हंसी भी आई आयी। लेकिन तब तक भले आदमी की श्रद्धा को तोड़ना भी ठीक मालुम न पडा। और उसे यह भी समझ में आ गया कि यह बड़ा उपयोगी व्यवसाय है।
फिर उसी कब्र के पास बैठकर रोता, यही उसका धंधा हो गया। लोग आते, गांव-गांव खबर फैल गयी कि किसी महान आत्मा की मृत्यु हो गयी। और गधे की कब्र किसी पहुँचे हुए फकीर की समाधि बन गयी। ऐसे वर्ष बीते, वह बंजारा बहुत धनी हो गया।
फिर एक दिन जिस सूफी साधु ने उसे यह गधा भेंट किया था। वह भी यात्रा पर था और उस गांव के करीब से गुजरा। उसे भी लोगों ने कहा, यह महान आत्मा की कब्र है यहां, दर्शन किये बिना मत चले जाना। वह गया देखा उसने इस बंजारे को बैठे देखा , तो उसने कहा, किसकी कब्र है यहाँ, और तू यहां बैठा क्यों रो रहा है। उस बंजारे ने कहां, अब आप से क्या छिपाना, जो गधा आप ने दिया था। उसी की कब्र है। जीते जी भी उसने बड़ा साथ दिया और मर कर और ज्यादा साथ दे रहा है। सुनते ही फकीर खिल खिलाकर हंसाने लगा। उस बंजारे ने पूछा आप हंसे क्यों? फकीर ने कहां तुम्हें पता है। जिस गांव में मैं रहता हूं वहां भी एक पहुँचे हुए महात्मा की कब्र है। उसी से तो मेरा काम चलता है। बंजारे ने पूछा वह किस महात्मा की कब्र है? साधू बोले क्या तुम्हें मालूम नहीं? उसने कहां मुझे कैसे मालुम होगा, पर क्या आप को मालूम है? साधू ने बताया ,वह इसी गधे की मां की कब्र है।
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सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंआज हिन्दुस्तान में इसी तरह अंधविश्वास पनप रहा है,न जाने कितने साधू संतो की रोजी रोटी चल रही है,,,,
जवाब देंहटाएंRecent post: रंग गुलाल है यारो,
क्या सटीक लेख लिखा आपने राजेन्द्र भाई | बधाई
जवाब देंहटाएंandhvishwas ki mahima bhari,hai chakkr me bahutayt nar nari
जवाब देंहटाएंअंध श्रृद्धा और अंध विश्वास पर ज़बर्जस्त प्रहर करती है यह बोध कथा .
जवाब देंहटाएंताज़ा तोड़े गए नारीयल से अभिप्राय दूधिया गोले से है जिसमें थोड़ा
बहुत पानी भी निकल आता है लेकिन
मूलतया जिसका सेवन
गरी के लिए किया जाता है,डोसे इडली के लिए तैयार की गई चटनी में भी
किया जाता है।यूं पानी वाला नारियल
,मलाई सहित या बिना मलाई वाला और भी उपयोगी है .
अंधविश्वास वाकई खतरनाक है, हमारी जीवन शैली के लिये
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक जानकारी प्रस्तुत की है आपने
सुन्दर सन्देश देती बहुत सारगर्भित कथा..
जवाब देंहटाएंसार्थक सन्देश देती सुन्दर कथा.
जवाब देंहटाएंसमाज में फैली अन्धविश्वास पर बहुत ही सटीक दिए हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक सन्देश,आज समाज में बहुत सारे अन्धविश्वास फैला हुआ है।
जवाब देंहटाएंसमाज में फैली अन्धविश्वास बहुत सार्थक जानकारी प्रस्तुत की है
जवाब देंहटाएंआज भी हमारे समाज में बहुत सी ऐसे अन्धविश्वास फैली हुई है जिनका हम आँख बंद कर के मन रहे हैं,सुन्दर सन्देश।
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर, लाभप्रद संदेश देती सार्थक कथा।
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर कथा , समाज को सटीक सन्देश।
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