चारों तरफ अजीब आलम हादसों में पल रही है जिंदगी,
फूलों के शक्ल में अंगारों पर चल रही है जिंदगी.
आदमी खूंखार वहसी हो गए हैं इस जमाने में,
दूध साँपों को पिलाकर खुद तड़प रही है जिंदगी.
हमारी कौम ने जो बाग सींचे थे अपना लहू देकर,
उन्हीं बाग के कलियों का मसलना देख रही है जिंदगी.
उजड रहे हैं रोज गुलशन अब कोई नजारा न रहा,
तलवारों खंजरों रूपी दरिंदों से लुट रही है जिंदगी.
अब तो यातनाओं के अंधेरों में ही होता है सफर,
लुट रही बहन-बेटियाँ असहाय बन गयी है जिंदगी.
हर पल सहमी-सहमी है घर की आबरू बहन-बेटियाँ,
हर तरफ हैवानियत का आलम नीलम ही रही है जिंदगी.
चुभती है कविता ग़ज़ल सुनाने का न रहा अब हौसला,
अब तो इस जंगल राज में कत्लगाह बन गयी है जिन्दगी.
Place Your Ad Code Here
हमारी कौम ने जो बाग सींचे थे अपना लहू देकर,
जवाब देंहटाएंउन्हीं बाग के कलियों का मसलना देख रही है जिंदगी...
देश के हालात को लिखा है ... पता नहीं क्या होता जा रहा है इंसान को ... बस मसलना सीख रहे हैं ...
अत्यन्त सुन्दर।
जवाब देंहटाएंकुछ घटनाएँ हमारे देश होती हैं ,जिसकी चुभन यहाँ महसूस होती है।
जवाब देंहटाएंशानदार...
जवाब देंहटाएंअब तो यातनाओं के अंधेरों में ही होता है सफर,
जवाब देंहटाएंलूट रही बहन-बेटियाँ असहाय बन गयी है जिंदगी......सही कहा आपने
सुंदर प्रस्तुति..... बहुत सही कहा आपने स्थिति बहुत ख़राब हो गयी है.
जवाब देंहटाएंचुभती है कविता ग़ज़ल सुनाने का न रहा अब हौसला,
जवाब देंहटाएंअब तो इस जंगल राज में कत्लगाह बन गयी है जिन्दगी.
सटीक रचना !!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार (26-04-2013) के चर्चा मंच 1226 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंआपका आभार है.
हटाएंइन शैतानों के बीच हम और आप जैसे इंसान भी हैं. इसलिए जिंदगी से निराश न हों और इसे जिंदादिल होकर जियें...
जवाब देंहटाएंसमसामयिक पंक्तियाँ..... बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंसटीक रचना, हमारी कौम ने जो बाग सींचे थे अपना लहू देकर,
जवाब देंहटाएंउन्हीं बाग के कलियों का मसलना देख रही है जिंदगी...
जवाब देंहटाएंउजड रहे हैं रोज गुलशन अब कोई नजारा न रहा,
तलवारों खंजरों रूपी दरिंदों से लूट रही है जिंदगी.-----
वर्तमान का सच गहन अनुभूति
उत्कृष्ट प्रस्तुति
उजड रहे हैं रोज गुलशन अब कोई नजारा न रहा,
जवाब देंहटाएंतलवारों खंजरों रूपी दरिंदों से लूट रही है जिंदगी.
अब तो यातनाओं के अंधेरों में ही होता है सफर,
लूट रही बहन-बेटियाँ असहाय बन गयी है जिंदगी.
कृपया दोनों स्थान पर "लुट "कर लें आज के सामजिक विद्रूप और मनोरोगी बनते समाज का चुभता नोंक दार चित्रण .
सही कर लिया है,आपका आभार.
हटाएंसुंदर प्रस्तुति.....आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना राजेंद्र जी,दर्द तो हम सभी को होता है।
जवाब देंहटाएंहमारी कौम ने जो बाग सींचे थे अपना लहू देकर,
जवाब देंहटाएंउन्हीं बाग के कलियों का मसलना देख रही है जिंदगी.
...कटु सत्य...आज के हालातों का बहुत सटीक चित्रण...
jane kab rukega ye silsila.............
जवाब देंहटाएंबडा शर्मनाक है यह सब।
जवाब देंहटाएं............
एक विनम्र निवेदन: प्लीज़ वोट करें, सपोर्ट करें!
ab tak y e haivaniyat ka khel hota rahega ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसाझा करने के लिए धन्यवाद!
आपका सादर आभार.
जवाब देंहटाएंहैवानियत तो हद पर कर गयी है,बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल.
जवाब देंहटाएंआज के बिगड़ते हालात पर बहुत ही मार्मिक ग़ज़ल.
जवाब देंहटाएंसुन्दर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंउम्दा ग़ज़ल | आभार
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
http://www.tamasha-e-zindagi.blogspot.in
http://www.facebook.com/tamashaezindagi