हर एक चेहरे को ज़ख़्मों का आईना न कहो
ये ज़िन्दगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो
ये ज़िन्दगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो
न जाने कौन सी मज़बूरियों का क़ैदी हो
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफ़ा न कहो
तमाम शहर ने नेज़ों पे क्यूँ उछाला मुझे
ये इत्तेफ़ाक़ था तुम इस को हादसा न कहो
ये और बात कि दुश्मन हुआ है आज मगर
वो मेरा दोस्त था कल तक उसे बुरा न कहो
हमारे ऐब हमें उँगलियों पे गिनवाओ
हमारी पीठ के पीछे हमें बुरा न कहो
मैं वाक़ियात की ज़न्जीर का नहीं क़ायल
मुझे भी अपने गुनाहों का सिलसिला न कहो
ये शहर वो है जहाँ राक्षस भी हैं बहुत
हर एक तराशे हुए बुत को देवता न कहो
चलते चलते --
अब फिरते हैं हम रिश्तों के रंग-बिरंगे ज़ख्म लिये
सबसे हँस कर मिलना-जुलना बहुत बड़ी बीमारी है
(सादर आभार:राहत इन्दौरी)
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सुन्दर शेर.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी गजल ... ये ज़िन्दगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंपधारें "आँसुओं के मोती"
bahut sunder bhavnayein aur abhivyakti!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर गजल राजेंद्र जी आभार।
जवाब देंहटाएंलाजवाब गज़ल .. ओर सभी शेर कमाल के ...
जवाब देंहटाएंवाह !!! बेहतरीन गजल ,आभार,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : क्यूँ चुप हो कुछ बोलो श्वेता.
हमारे ऐब हमें उँगलियों पे गिनवाओ
जवाब देंहटाएंहमारी पीठ के पीछे हमें बुरा न कहो
supar ,khas kar ye sher,,,,,
kya bat hai,sundar gazal
जवाब देंहटाएंयूँ तो सभी अशआर अपने आप में खूबसूरत हैं,
जवाब देंहटाएंलेकिन मुझे ये बहुत पसंद आया :
हमारे ऐब हमें उँगलियों पे गिनवाओ
हमारी पीठ के पीछे हमें बुरा न कहो
आभार !
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति,शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंBehtrin gajal,subhkamnayen.
जवाब देंहटाएंव्बहुत ही सुन्दर शेर,बेहतरीन ग़ज़ल.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ग़ज़ल.....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शेर!!
अनु
सकारात्मक सोंच से सजी सुन्दर गजल की प्रस्सतुति हेतु आपको सादर बधाई।
जवाब देंहटाएंशानदार रचना। आभार।
जवाब देंहटाएंनये लेख : "चाय" - आज से हमारे देश का राष्ट्रीय पेय।
भारतीय रेलवे ने पूरे किये 160 वर्ष।
ये और बात कि दुश्मन हुआ है आज मगर
जवाब देंहटाएंवो मेरा दोस्त था कल तक उसे बुरा न कहो
...वाह! बेहतरीन ग़ज़ल...
Bahut khoobsurat gajal. are sher sunder .
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