मानव में गर शक्ति होती
प्रार्थना की उत्पति न होती
मानव में गर भक्ति होती
प्रार्थना की संतति न होती।
मानव में गर विरक्ति होती
लोभ-वृति कतई न होती
शक्ति,भक्ति,विरक्ति,
प्रार्थना की देन है बन्धु !
कहता है सत-चित-ज्ञान सिन्धु
विन्दु में झरे बिन सिन्धु
सुज्ञान की वर्षा न होती
जहाँ पर मति सोती
वहाँ कलह होती।
घर,गावँ,शहर में होती
प्रदेश और देश में होती
मानव में गर शक्ति होती
दानव की उत्पति न होती।
प्रार्थना में है शक्ति
शक्ति में है भक्ति
भक्ति में है विरक्ति
विरक्ति में है जीवन
जीवन ग्रहण कीजिये
मरना को मुक्ति दीजिये
इसी में है बहु-जन हित
इसी में है देश हित।
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आदर्श दर्शन उकेरती कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया भावपूर्ण उम्दा प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : फूल बिछा न सको
बहुत सुन्दर कविता .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - सोमवार -02/09/2013 को
जवाब देंहटाएंमैंने तो अपनी भाषा को प्यार किया है - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः11 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
बहुत बढ़िया भावपूर्ण उम्दा प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया भावपूर्ण प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया भावपूर्ण उम्दा प्रस्तुति, सादर
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ! बहुत अच्छी रचना ! बधाई !
जवाब देंहटाएंहिंदी
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बहुतसुन्दर, भावपूर्ण उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंlatest post नसीहत
sundar rachna , satya kaha apne
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया रचना पढ़कर बहुत अच्छा लगा.......
जवाब देंहटाएंवाह ...
जवाब देंहटाएंबधाई !