रविवार, 1 सितंबर 2013

मानव की शक्ति




मानव में गर शक्ति होती 
प्रार्थना की उत्पति न होती 
मानव में गर भक्ति होती 
प्रार्थना की संतति  न होती। 
मानव में गर विरक्ति होती 
लोभ-वृति कतई न होती 
शक्ति,भक्ति,विरक्ति,
प्रार्थना की देन है बन्धु !
कहता है सत-चित-ज्ञान सिन्धु 
विन्दु में झरे बिन सिन्धु 
सुज्ञान की वर्षा  न होती 
जहाँ पर मति सोती 
वहाँ कलह होती।  
घर,गावँ,शहर में होती 
प्रदेश और देश में होती 
मानव में गर शक्ति होती 
दानव की उत्पति न होती। 
प्रार्थना में है शक्ति 
शक्ति में है भक्ति 
भक्ति में है विरक्ति 
विरक्ति में है जीवन 
जीवन ग्रहण कीजिये 
मरना को मुक्ति दीजिये 
इसी में है बहु-जन हित 
इसी में है देश हित। 
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12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - सोमवार -02/09/2013 को
    मैंने तो अपनी भाषा को प्यार किया है - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः11 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra




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  2. बहुत बढ़िया भावपूर्ण उम्दा प्रस्तुति,,,

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  3. बहुत बढ़िया भावपूर्ण प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया भावपूर्ण उम्दा प्रस्तुति, सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुतसुन्दर, भावपूर्ण उम्दा प्रस्तुति
    latest post नसीहत

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  6. बहुत ही बढ़िया रचना पढ़कर बहुत अच्छा लगा.......

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आपकी मार्गदर्शन की आवश्यकता है,आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है, आपके कुछ शब्द रचनाकार के लिए अनमोल होते हैं,...आभार !!!