धरा के रंग
१.
धरा के रंग
सजी-सँवरी दुल्हन
सुहाने लगे
२.
स्वर्ण सा दिखे
चाँद की चाँदनी में
अमलताश
३.
ओस की बूंदें
घास पर पसरी
मानो है मोती
४.
ओस बेचारी
जीवन मनोरम
रात का साथ
५.
छटा बिखेरे
चंद्रमा की किरणे
स्वच्छ चाँदनी
६.
भोर की हवा
जीवन का अमृत
निरोगी काया
७.
हुआ सवेरा
आकाश की लालिमा
सुहानी लगे
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बहुत खुबसूरत धरा के रंग बिखरे हैं.... कविता में भावयुक्त रचना!!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर हाइकू !
जवाब देंहटाएंधरा के रंग बिखेरती बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन हाइकु..
जवाब देंहटाएंप्रस्तुतीकरण अति सुन्दर...
:-)
भोर की हवा
जवाब देंहटाएंजीवन का अमृत
निरोगी
भोर की हवा
जीवन का अमृत
निरोगी काया
प्रात ;सैर को उकसाती सुन्दर प्रस्तुति।
भोर की हवा
जवाब देंहटाएंजीवन का अमृत
निरोगी,,,
वाह !!! बहुत सुंदर ,,,
RECENT POST : समझ में आया बापू .
बढ़िया प्रस्तुति है आदरणीय-
जवाब देंहटाएंआभार आपका-
हुआ सवेरा
जवाब देंहटाएंआकाश की लालिमा
(सुहाना लगे) के बजाय (सुहानी लगे) कर लें। भाद्रपद की सुहानी छटा को सुन्दर शब्द-संकेतों से सजाया है आपने।
आभार आपका-
हटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (09.09.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन हाइकु..
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर...
अति सुन्दर..
जवाब देंहटाएंमिट्टी की खुशबू लिए ... सुन्दर हाइकू सभी ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर हाइकू .....
जवाब देंहटाएंसाभार.....
सुन्दर हाइकू !
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