रविवार, 6 अक्तूबर 2013

इन्सान को इन्सान समझिये



ताकत पे सियासत की ना गुमान कीजिये, 
इन्सान हैं इन्सान को इन्सान समझिये। 

यूँ पेश आते हो मनो नफरत हो प्यार में, 
मीठे बोल न निकले क्यूँ जुबां की कटार से। 

खुद जख्मी हो गये हो अपने ही कटार से, 
सच न छुपा पाओगे अपने इंकार से। 

आँखें  भुला के दिल के आईने में झाकिये, 
इन्सान हो इन्सान को इन्सान ही समझिये। 

कैसी ख़ुशी है आप को ऐसे आतंक से ?
कैसा सकुन बहते हुए खून के रंग से ?

तलवारों खंजरों में क्यूँ किया सिंगार  है, 
आप भी दुश्मन हैं आपके इस जंग में। 

खुद से न सही अपने आप से डरिये, 
इन्सान हो इन्सान को इन्सान समझिये। 

खुद का शुक्र है आप भी इन्सान हैं, 
इंसानियत से न जाने क्यूँ अनजान हैं। 

शुक्र कीजिये की खुदा मेहरबान है, 
वरना आप कौन ? क्या पहचान है। 

सच यही है, अब तो ये जान लीजिये, 
इन्सान हो इन्सान को इन्सान समझिये। 



25 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद शानदार गजल राजेंद्र जी, आभार।

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  2. खुबसूरत प्रस्तुति भाई राजेन्द्र जी, आभार।

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  3. सुंदर !

    इंसान हैं कि नहीं
    यही तो बस अभी
    तक पता नहीं
    आप कहते हैं तो
    चलिये मान लेते हैं
    इंसान को इंसान
    समझने में वैसे तो
    होती है कोई खता नहीं !

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  4. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरणीय राजेन्द्र जी-
    नव रात्रि की शुभकामनायें-

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
    नवरात्री की शुभकामनाएँ :-)

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  6. सुन्दर प्रस्तुति-आभार आदरणीय राजेन्द्र जी

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  7. बहुत सुंदर गजल ,राजेंद्र जी .नवरात्री की शुभकामनाएँ

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  8. वाह ! बहुत ही सुंदर गजल !
    नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनायें-

    RECENT POST : पाँच दोहे,

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  9. बेह्तरीन अभिव्यक्ति!!शुभकामनायें.

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  10. मन को ऊर्ध्वगामी बनाती रचना।

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  11. बेहद शानदार गजल राजेंद्र जी,शुभकामनायें।

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  12. बहुत खूब ... गूच गहरी बातें सहज ही लिख दी हैं इन पंक्तियों में ...

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  13. सशक्त भावाभिव्यक्ति संवाद करती हुई अपने वक्त से।

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  14. क्या बात है राजेन्द्र भाई तालिबान (छात्र )होने का मतलब समझा दिया।


    क्या बात है राजेन्द्र भाई तालिबान (छात्र )होने का मतलब समझा दिया। अब इंसानों के बस्ती में तालिबान ही होते हैं।

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  15. thanks for your comments.Could not post comments on that neatly written article on sleep disturbance .

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  16. अद्यतन महत्वपूर्ण जानकारी।

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