शनिवार, 19 जनवरी 2013

धागा प्रेम का






                         रोक रही हूँ छलकते आंसुओं को 
                         जब मिलोगे करूँगी अर्पित तुझे ही 
                         आंसुओं  का अर्घ्य शीतल हेम सा 
                         मुंह  फेर रुखसत हो गये 
                         मुड़कर  अश्कों  भरी नयनो को देखा ही नहीं  
                         रहे  हमेशा वफा में पावँ लिपटे हुए 
                         बीते सौ कहानियों में से क्या कहूँ 
                         साथ नही है कोई आंसुओं  के तिजारत में 
                         जब भी मिलोगे 
                         आँखों में आँसू लबो को हँसता  पाओगे 
                         आँसू  भरे दामन से मुंह   ढाँप रहें 
                         कर रहें हैं आपका इंतजार 
                         याद रखना वस  यहीं 
                         सबंध अपना जोड़ता है 
                         वज्र  से गुरु,फूलों से मृदु एक धागा प्रेम का।

                                     (चित्र Google से साभार)                      
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35 टिप्‍पणियां:

  1. वाह क्या कहने राजेन्द्र जी जवाब नहीं आपका सुन्दर रचना हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. राजिन्द्र जी बढ़िया लिखा है आपने |

      कुछ वर्तनी में अशुद्धियाँ हैं उन्हें दूर करने का प्रयास करें |मैं ये मानता हूँ ये आपकी तरफ से नहीं हुई | ये सिर्फ हिंदी लेखन के बारे में अक्सर हो जाने वाली त्रुटियाँ हैं | कृपया इसे अन्यथा न लें | जैसे :-

      आँसू , मुँह, मुड़कर, नहीं, पाँव, हँसता, ढाँप

      हटाएं
    2. आपके द्वारा वर्तनी की असुधियों के तरफ ध्यान दिलाने का बहुत बहुत शुक्रिया। सुधार कर दिये हैं।

      हटाएं
  2. बढ़िया प्रस्तुति ||

    डाले क्यूँ जीवंत चित्र, विचलित हो मन मोर |
    कौन रुलाया है इसे, कहाँ गया चित-चोर |
    कहाँ गया चित-चोर, आज हो उसकी पेशी |
    होने को है भोर, देर कर देता वेशी |
    रविकर कारण ढूँढ़, तनिक चुप हो जा बाले |
    मत कर आँखें लाल, नजर प्यारी सी डाले ||

    जवाब देंहटाएं
  3. लिंक-लिक्खाड़ पर प्रदर्शित करने के लिए बहुत सारे आभार।

    जवाब देंहटाएं
  4. रोक रही हूँ छलकते आंसूओ (आंसुओं )...........को


    जब मिलोगे करूँगी अर्पित तुझे ही

    आंसूओ का अर्घ्य शीतल हेम सा .........आसुओं का ....

    मुहं(मुंह )....... फेर रुखसत हो गये

    मुडकर (मुड़कर ).....अश्को (अश्कों ).....भरी नयनो(नयनों ) को देखा ही नही (नहीं )

    रहे हमेशा वफा में पावं लिपटे हुए


    बीते सौ कहानियों में से क्या कहूँ


    साथ नही (नहीं )है कोई आंसूओ के तिजारत में


    जब भी मिलोगे


    आँखों में आंसू लबो (लबों )को हंसता पाओगे


    आंसू भरे दामन से मुंह ढाप रहें


    कर रहें हैं आपका इंतजार


    याद रखना वश(बस ) यहीं (यही )........


    सबंध अपना जोड़ता है


    बज्र (वज्र )......से गुरु,फूलों से मृदु एक धागा प्रेम का।

    बहुत सुन्दर रचना है भाई साहब .बहु वचन में अनुनासिक /अनुस्वार /बिंदी का ध्यान रखें रचना में चार चाँद लग जायेंगे .हिमाकत की है

    कहने की .शुक्रिया आपकी सद्य टिप्पणियों का .हमारी भी कमियाँ बताइये ,अच्छा लगेगा .

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  5. ram ram bhai
    मुखपृष्ठ

    शनिवार, 19 जनवरी 2013
    कहीं आप युवा कांग्रेस की राहुल सेना तो नहीं ?

    http://veerubhai1947.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  6. आपकि बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपका लिखी धागा प्रेम का बहुत निराली है

    जवाब देंहटाएं
  7. सबसे बड़े ब्लॉग मंच पर स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यबाद, सादर।

    जवाब देंहटाएं
  8. Bahut khoob likha hai aapne Rajendraji. Rafi Saheb ne gaya tha: Ye aankhen meri dil ki zuban hai.

    जवाब देंहटाएं
  9. @बज्र से गुरु,फूलों से मृदु एक धागा प्रेम का।


    वाह..
    शुभकामनायें आपको !

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत ही सुन्दर ,,,,
    प्रेम के आंसू कुछ ऐसे ही होते हैं ,,,

    जवाब देंहटाएं
  11. वाह कविता और चित्र दौनों ही बहुत सुन्दर हैं |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  12. रचना के भाव ,भाषा लाजवाब और चित्र ने उसे बेमिसाल बना दिया .अति सुन्दर प्रस्तुति
    New post : शहीद की मज़ार से
    New post कुछ पता नहीं !!! (द्वितीय भाग )

    जवाब देंहटाएं
  13. रोक रही हूँ
    छलकते आंसूओ को
    जब मिलोगे
    करूँगी अर्पित तुझे ही
    आंसूओ
    का अर्घ्य शीतल हेम सा ...वाह क्या प्रेम भाव हैँ साधु साधु साधुबाद साधत्य साधवान साधहृद्वीत्य साधो सधे साधु साधु ..।

    जवाब देंहटाएं
  14. बज्र से गुरु,फूलों से मृदु एक धागा प्रेम का।

    खूबसूरत भाव, लाजवाब प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं
  15. विचार और भाव की सशक्त अभिव्यक्ति .

    ram ram bhai
    मुखपृष्ठ

    रविवार, 20 जनवरी 2013
    .फिर इस देश के नौजवानों का क्या होगा ?
    http://veerubhai1947.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  16. आंसुओं का अर्घ्‍य.;मन पिघला देता है..सुंदर रचना

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  17. सुन्दर रचना हार्दिक बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  18. काँपीराइट काँन्टेँट पर एक प्रश्न के उत्तर को वोट करे आपका वोट चाहिए आप किससे सहमत हैँ ।

    दोस्तो पता नही क्यो कई लोग कहते
    हैँ कि वो ये कार्य ज्ञान फैलाने के
    लिए कर रहे हैँ बडी मेहनत कर रहे हैँ
    अनपढ अनजान लोग की सेवा कर रहे
    हैँ उन्हे रास्ता दिखा रहेँ हैँ लेकिन
    जब उसके ज्ञान को अपना कहकर दुसरे
    भी बाँटने लगते हैँ तो क्यो पहले वालेँ
    को बुरा लगता हैँ ये तो मुझे
    पता नही क्योँकि दुसरा भी तो वही
    कर रहा हैँ जो पहले वाले कर रहेँ थे
    यदी उसने अपने नाम से
    ही सही ज्ञान बाँटा तो पहले वाले
    क्योँ दुःख क्योँ होता हैँ
    क्योकि दुसरा तो एक तरह से
    देखा जायेँ तो पहले वाले
    का ही लक्ष्य पुरा कर रहा हैँ
    यदी पहले वाले को दुःख या गम
    हो रहा हैँ तो इसका एक ही मतलब हैँ
    कि इसके पिछे उसका अपना स्वार्थ
    जुडा हुआ हैँ जो कि प्रत्यक्ष
    या अप्रत्यक्ष रुप से दिख रहा हैँ
    अथवा नहीँ दिख रहा होगा इसपर
    निचे मैने एक छोटा गणित के माध्यम
    से परिभाषित कर रहा हुँ आप यह
    बताऐ कि आप अन्त मेँ निकले किस
    परिणाम से सहमत हैँ आपके
    सकारात्मक नकारात्मक
    सभी विचारोँ का स्वागत हैँ ।
    आप किससे सहमत हैँ
    काँन्टेँट निर्माण + पोस्टिँग =
    ज्ञान का फैलाव
    काँन्टेँट काँपी + पोस्टिँग =ज्ञान
    का फैलाव
    इसलिए यदी आप
    काँन्टेँट काँपी +
    पोस्टिँग=चोरी या दोहन
    अथवा दुःख
    मानते हैँ तो अर्थ
    सीमित स्थान व्यक्ति+काँन्टेँट
    निर्माण=निजी ज्ञान
    सीमित स्थान व्यक्ति+काँन्टेँट
    निर्माण+काँन्टेँट पोस्टिँग =अन्य
    उद्देश्य जैसे पोपुलर होना अपने आप
    को बडा साबित करना
    अतः परिणाम
    काँन्टेँट काँपी + काँन्टेट पोस्टिँग =
    ज्ञान का फैलाव =निस्वार्थ कार्य
    इसलिए
    काँन्टेँट र्निमान+काँन्टेँट पोस्टिँग
    +सीमित =स्वार्थ भरे उद्देश्य =
    ज्ञान का सिमीत फैलाव = पिँजडे मे
    कैद पंछी
    अतः
    ज्ञान का फैलाव vs ज्ञान
    का सीमित फैलाव =ज्ञान का फैलाव
    यानि अच्छा हैँ
    पिँजडे मेँ बंद पंक्षी vs खुला ज्ञान
    फैलाने वाला पंक्षी =उडता पंक्षी
    अर्थात
    काँन्टेँट निर्माण+काँन्टेँट पोस्टिँग
    vs काँन्टेँट काँपी +काँन्टेँट
    पोस्टिँग=काँन्टेँट काँपी +काँन्टेँट
    पोस्टिँग कही ज्यादा अच्छा और
    निस्वार्थ ज्ञान फैलाने हैँ
    जो कि ,काँन्टेँट र्निमाण +सिमीत
    +पोस्टिँग , से नही समझे
    तो दुबारा अवलोकन कर लेँ ।
    निचोड ! काँन्टेँट निर्माण
    +पोस्टिँग +सिमीत =ज्ञान को एक
    पंछी की तरह कैद कर
    लोगो को दिखाना ।
    काँन्टेँट काँपी + पोस्टिँग =ज्ञान
    का निस्वार्थ फैलाव ।
    अतः आपका क्या पसंद हैँ
    1 ... काँन्टेँट निर्माण + पोस्टिँग+
    सिमीत
    व्यक्ति या अधिकार=स्वार्थ भरे
    उद्देश्य
    ज्ञान को पिँजडे मेँ कैद कर
    लोगो को दिखाना
    या
    2 .. काँन्टेँट निर्माण+पोस्टिँग=
    ज्ञान का फैलाव , कोइ स्वार्थ नही
    वोट करे ..आपका वरुण ।

    जवाब देंहटाएं
  19. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण.

    जवाब देंहटाएं

आपकी मार्गदर्शन की आवश्यकता है,आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है, आपके कुछ शब्द रचनाकार के लिए अनमोल होते हैं,...आभार !!!