रोक रही हूँ छलकते आंसुओं को
जब मिलोगे करूँगी अर्पित तुझे ही
आंसुओं का अर्घ्य शीतल हेम सा
मुंह फेर रुखसत हो गये
मुड़कर अश्कों भरी नयनो को देखा ही नहीं
रहे हमेशा वफा में पावँ लिपटे हुए
बीते सौ कहानियों में से क्या कहूँ
साथ नही है कोई आंसुओं के तिजारत में
जब भी मिलोगे
आँखों में आँसू लबो को हँसता पाओगे
आँसू भरे दामन से मुंह ढाँप रहें
कर रहें हैं आपका इंतजार
याद रखना वस यहीं
सबंध अपना जोड़ता है
वज्र से गुरु,फूलों से मृदु एक धागा प्रेम का।
(चित्र Google से साभार)
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वाह क्या कहने राजेन्द्र जी जवाब नहीं आपका सुन्दर रचना हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मित्रवर।
हटाएंराजिन्द्र जी बढ़िया लिखा है आपने |
हटाएंकुछ वर्तनी में अशुद्धियाँ हैं उन्हें दूर करने का प्रयास करें |मैं ये मानता हूँ ये आपकी तरफ से नहीं हुई | ये सिर्फ हिंदी लेखन के बारे में अक्सर हो जाने वाली त्रुटियाँ हैं | कृपया इसे अन्यथा न लें | जैसे :-
आँसू , मुँह, मुड़कर, नहीं, पाँव, हँसता, ढाँप
आपके द्वारा वर्तनी की असुधियों के तरफ ध्यान दिलाने का बहुत बहुत शुक्रिया। सुधार कर दिये हैं।
हटाएंबढ़िया प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंडाले क्यूँ जीवंत चित्र, विचलित हो मन मोर |
कौन रुलाया है इसे, कहाँ गया चित-चोर |
कहाँ गया चित-चोर, आज हो उसकी पेशी |
होने को है भोर, देर कर देता वेशी |
रविकर कारण ढूँढ़, तनिक चुप हो जा बाले |
मत कर आँखें लाल, नजर प्यारी सी डाले ||
आपका बहुत बहुत आभार।
हटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यबाद।
हटाएंलिंक-लिक्खाड़ पर प्रदर्शित करने के लिए बहुत सारे आभार।
जवाब देंहटाएंरोक रही हूँ छलकते आंसूओ (आंसुओं )...........को
जवाब देंहटाएंजब मिलोगे करूँगी अर्पित तुझे ही
आंसूओ का अर्घ्य शीतल हेम सा .........आसुओं का ....
मुहं(मुंह )....... फेर रुखसत हो गये
मुडकर (मुड़कर ).....अश्को (अश्कों ).....भरी नयनो(नयनों ) को देखा ही नही (नहीं )
रहे हमेशा वफा में पावं लिपटे हुए
बीते सौ कहानियों में से क्या कहूँ
साथ नही (नहीं )है कोई आंसूओ के तिजारत में
जब भी मिलोगे
आँखों में आंसू लबो (लबों )को हंसता पाओगे
आंसू भरे दामन से मुंह ढाप रहें
कर रहें हैं आपका इंतजार
याद रखना वश(बस ) यहीं (यही )........
सबंध अपना जोड़ता है
बज्र (वज्र )......से गुरु,फूलों से मृदु एक धागा प्रेम का।
बहुत सुन्दर रचना है भाई साहब .बहु वचन में अनुनासिक /अनुस्वार /बिंदी का ध्यान रखें रचना में चार चाँद लग जायेंगे .हिमाकत की है
कहने की .शुक्रिया आपकी सद्य टिप्पणियों का .हमारी भी कमियाँ बताइये ,अच्छा लगेगा .
ram ram bhai
जवाब देंहटाएंमुखपृष्ठ
शनिवार, 19 जनवरी 2013
कहीं आप युवा कांग्रेस की राहुल सेना तो नहीं ?
http://veerubhai1947.blogspot.in/
आपकि बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपका लिखी धागा प्रेम का बहुत निराली है
जवाब देंहटाएंसबसे बड़े ब्लॉग मंच पर स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यबाद, सादर।
जवाब देंहटाएंVery beautifully expressed.
जवाब देंहटाएंThank you sanjay ji.
हटाएंBahut khoob likha hai aapne Rajendraji. Rafi Saheb ne gaya tha: Ye aankhen meri dil ki zuban hai.
जवाब देंहटाएंThanks sir,
हटाएं@बज्र से गुरु,फूलों से मृदु एक धागा प्रेम का।
जवाब देंहटाएंवाह..
शुभकामनायें आपको !
धन्यबाद आपका।
हटाएंबहुत ही सुन्दर ,,,,
जवाब देंहटाएंप्रेम के आंसू कुछ ऐसे ही होते हैं ,,,
धन्यबाद आपका।
हटाएंवाह कविता और चित्र दौनों ही बहुत सुन्दर हैं |
जवाब देंहटाएंआशा
आपका सादर अभिवादन।
हटाएंरचना के भाव ,भाषा लाजवाब और चित्र ने उसे बेमिसाल बना दिया .अति सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंNew post : शहीद की मज़ार से
New post कुछ पता नहीं !!! (द्वितीय भाग )
रोक रही हूँ
जवाब देंहटाएंछलकते आंसूओ को
जब मिलोगे
करूँगी अर्पित तुझे ही
आंसूओ
का अर्घ्य शीतल हेम सा ...वाह क्या प्रेम भाव हैँ साधु साधु साधुबाद साधत्य साधवान साधहृद्वीत्य साधो सधे साधु साधु ..।
आपका साधुवाद।
हटाएंबज्र से गुरु,फूलों से मृदु एक धागा प्रेम का।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत भाव, लाजवाब प्रस्तुति.
विचार और भाव की सशक्त अभिव्यक्ति .
जवाब देंहटाएंram ram bhai
मुखपृष्ठ
रविवार, 20 जनवरी 2013
.फिर इस देश के नौजवानों का क्या होगा ?
http://veerubhai1947.blogspot.in/
आंसुओं का अर्घ्य.;मन पिघला देता है..सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना हार्दिक बधाई...
जवाब देंहटाएंकाँपीराइट काँन्टेँट पर एक प्रश्न के उत्तर को वोट करे आपका वोट चाहिए आप किससे सहमत हैँ ।
जवाब देंहटाएंदोस्तो पता नही क्यो कई लोग कहते
हैँ कि वो ये कार्य ज्ञान फैलाने के
लिए कर रहे हैँ बडी मेहनत कर रहे हैँ
अनपढ अनजान लोग की सेवा कर रहे
हैँ उन्हे रास्ता दिखा रहेँ हैँ लेकिन
जब उसके ज्ञान को अपना कहकर दुसरे
भी बाँटने लगते हैँ तो क्यो पहले वालेँ
को बुरा लगता हैँ ये तो मुझे
पता नही क्योँकि दुसरा भी तो वही
कर रहा हैँ जो पहले वाले कर रहेँ थे
यदी उसने अपने नाम से
ही सही ज्ञान बाँटा तो पहले वाले
क्योँ दुःख क्योँ होता हैँ
क्योकि दुसरा तो एक तरह से
देखा जायेँ तो पहले वाले
का ही लक्ष्य पुरा कर रहा हैँ
यदी पहले वाले को दुःख या गम
हो रहा हैँ तो इसका एक ही मतलब हैँ
कि इसके पिछे उसका अपना स्वार्थ
जुडा हुआ हैँ जो कि प्रत्यक्ष
या अप्रत्यक्ष रुप से दिख रहा हैँ
अथवा नहीँ दिख रहा होगा इसपर
निचे मैने एक छोटा गणित के माध्यम
से परिभाषित कर रहा हुँ आप यह
बताऐ कि आप अन्त मेँ निकले किस
परिणाम से सहमत हैँ आपके
सकारात्मक नकारात्मक
सभी विचारोँ का स्वागत हैँ ।
आप किससे सहमत हैँ
काँन्टेँट निर्माण + पोस्टिँग =
ज्ञान का फैलाव
काँन्टेँट काँपी + पोस्टिँग =ज्ञान
का फैलाव
इसलिए यदी आप
काँन्टेँट काँपी +
पोस्टिँग=चोरी या दोहन
अथवा दुःख
मानते हैँ तो अर्थ
सीमित स्थान व्यक्ति+काँन्टेँट
निर्माण=निजी ज्ञान
सीमित स्थान व्यक्ति+काँन्टेँट
निर्माण+काँन्टेँट पोस्टिँग =अन्य
उद्देश्य जैसे पोपुलर होना अपने आप
को बडा साबित करना
अतः परिणाम
काँन्टेँट काँपी + काँन्टेट पोस्टिँग =
ज्ञान का फैलाव =निस्वार्थ कार्य
इसलिए
काँन्टेँट र्निमान+काँन्टेँट पोस्टिँग
+सीमित =स्वार्थ भरे उद्देश्य =
ज्ञान का सिमीत फैलाव = पिँजडे मे
कैद पंछी
अतः
ज्ञान का फैलाव vs ज्ञान
का सीमित फैलाव =ज्ञान का फैलाव
यानि अच्छा हैँ
पिँजडे मेँ बंद पंक्षी vs खुला ज्ञान
फैलाने वाला पंक्षी =उडता पंक्षी
अर्थात
काँन्टेँट निर्माण+काँन्टेँट पोस्टिँग
vs काँन्टेँट काँपी +काँन्टेँट
पोस्टिँग=काँन्टेँट काँपी +काँन्टेँट
पोस्टिँग कही ज्यादा अच्छा और
निस्वार्थ ज्ञान फैलाने हैँ
जो कि ,काँन्टेँट र्निमाण +सिमीत
+पोस्टिँग , से नही समझे
तो दुबारा अवलोकन कर लेँ ।
निचोड ! काँन्टेँट निर्माण
+पोस्टिँग +सिमीत =ज्ञान को एक
पंछी की तरह कैद कर
लोगो को दिखाना ।
काँन्टेँट काँपी + पोस्टिँग =ज्ञान
का निस्वार्थ फैलाव ।
अतः आपका क्या पसंद हैँ
1 ... काँन्टेँट निर्माण + पोस्टिँग+
सिमीत
व्यक्ति या अधिकार=स्वार्थ भरे
उद्देश्य
ज्ञान को पिँजडे मेँ कैद कर
लोगो को दिखाना
या
2 .. काँन्टेँट निर्माण+पोस्टिँग=
ज्ञान का फैलाव , कोइ स्वार्थ नही
वोट करे ..आपका वरुण ।
शानदार रचना के लिए आपको धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअपना-अंतर्जाल
एचटीएमएल हिन्दी में
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बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण.
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएं