ढेर सरे फूलों के बीज लेकर आया हूँ
किन्तु
तुम्हारे घर के पत्थरों को देखकर
सोचता हूँ
इन बीजों को क्या करूं
अच्छा होता
मैं इन बीजों के साथ
मुठ्ठी भर मिट्टी भी लाता
और अँजुरी हथेली में ही
हथेली की ऊष्मा तथा तुम्हारी आँखों की नमी से
अँजुरी भर फूल उगाता।
हमने तो हमेशा काँटों को भी नरमी से छुआ है,
लेकिन लोग वेदर्दी हैं फूलों को भी मसल देते।
(आभार डॉ रिपुसूदन जी का) Place Your Ad Code Here
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंमिटटी डालो भूल पर, मेहनत हुई वसूल ।
जवाब देंहटाएंहाथों पर सरसों जमे, खिलें धूल के फूल ।
खिलें धूल के फूल, मूल में प्यार निहित है ।
तेरे सत्य उसूल, जगत को सर्वविदित है ।
कहीं नजर ना लगे, लगे मस्तक पर दीठी ।
बहुत जरुरी बीज, मिले उप्जाऊ मिटटी ।।
वाह गुरूजी कमाल की है आपकी काव्य रचना.
हटाएंनजर नहीं लग जाय, करो स्वारथ की छुट्टी ।
हटाएंसुआरथ हो ही जाय, बदन की अपनी मिटटी ।।
bhut khub ravi sir
हटाएंAnupam Rachna.. badhai
जवाब देंहटाएंmeri nayi Rachna par apka swagat hai
http://ehsaasmere.blogspot.in/2013/02/blog-post_11.html
धन्यबाद अधीर जी.
हटाएंक्या बात है राजेंदर भाई | उत्तम प्रस्तुति | बधाई
जवाब देंहटाएंTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
धन्यबाद.
हटाएंराजेंद्र भाई बेहद सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपका आभार है मित्र.
हटाएंसुन्दर रचना !!
जवाब देंहटाएंधन्यबाद महोदय.
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .
जवाब देंहटाएंhttp://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/
http://mmsaxena69.blogspot.in/
आभार,ये लिंक्स को ब्लॉग कलश पर छोड़ना था,खैर सभी को शामिल कर दिए है.
हटाएंहथेली की ऊष्मा तथा तुम्हारी आँखों की नमी से
जवाब देंहटाएंअँजुरी भर फूल उगाता।-----gehan anubhuti/sunder kalpna---badhai
स्वागत है आपका.
हटाएंदिल को छू लेनी वाली रचना! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंधन्यबाद महोदय.
जवाब देंहटाएंआभार है महोदय.
जवाब देंहटाएंआबे-दीद उतर कर जर्रों में मिल गए..,
जवाब देंहटाएंतेरी वफ़ा के फूल इन कतरों में खिल गए.....
आभार मेरे ब्लॉग पर आने का ॥
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति राजेन्द्र जी ....
बधाई एवं शुभकामनायें ....
Behatareen prastutu,bhav purn rachna
जवाब देंहटाएंअच्छा होता
जवाब देंहटाएंमैं इन बीजों के साथ
मुठ्ठी भर मिट्टी भी लाता
और अँजुरी हथेली में ही
हथेली की ऊष्मा तथा तुम्हारी आँखों की नमी से
अँजुरी भर फूल उगाता।
बहुत शानदार भावअभिव्यक्ति ,
recent post: बसंती रंग छा गया
बहुत सुंदर कविता.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ....
जवाब देंहटाएंsunder bhav abhivyakti.
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी रचना .............
जवाब देंहटाएंफूल, बीज, उष्मा, नमी.....वाह क्या कोमल कल्पना है...
जवाब देंहटाएंअति उत्तम राजेन्द्र जी...
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