कैसी ये सरकार
झुठ-फरेब का ही
कर रही व्यापार
गूंगे बहरे बने रहने में
सोचती है भलाई
दुश्मन देते घाव पर घाव
न किया कभी भी
उन पर फुँफकार
अमन चैन को तरसती
बेबस जनता
हो रही भेड़ियों के शिकार
न्याय कानून का रास्ता
केवल गरीबों को नापता
बाहुबली खुले घूम रहें
खद्दर टोपी के साये में
महंगाई हर पल बढ़ रही
सुरसा के मुहँ की तरह
नेता बैठे ए सी केबिन में
बजाते हैं केवल गाल
आम जनता जी रही
बेबसी और लाचारी में
मस्ती में घूम रहें
नेता और शिकारी
न करता कोई
दिल से इनका विरोध
लूट रहे हैं लूटने दो
आज उनका दौर है
कल हमारा भी होगा
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बहुत सुद्नर आभार आपने अपने अंतर मन भाव को शब्दों में ढाल दिया
जवाब देंहटाएंआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
एक शाम तो उधार दो
आप भी मेरे ब्लाग का अनुसरण करे
धन्यबाद दिनेश भाई.
हटाएंआज उनका दौर है
जवाब देंहटाएंकल हमारा भी होगा
पता नही वो दिन कब आएगा ...
आपका आभार आदरेया.
हटाएंसटीक प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंआभार !!
आभार मान्यवर.
हटाएंबेहद सुन्दर राजेंदर जी।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मनोज जी.
हटाएंबढ़िया है आदरणीय-
जवाब देंहटाएंलाई-गुड़ देती बटा, मुँह में लगी हराम |
रेवड़ियाँ कुछ पा गए, भूल गए हरिनाम |
भूल गए हरिनाम, इसी में सारा कौसल |
बिन बोये लें काट, चला मत खेतों में हल |
बने निकम्मे लोग, चले हैं कोस अढ़ाई |
गए कई युग बीत, हुई पर कहाँ भलाई ??
आपका आभार है आदरणीय.
हटाएंबहुत ही उम्दा सटीक प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंRecent Post: सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार,
धन्यबाद है आपको...
हटाएंधन्यबाद...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक कविता.
जवाब देंहटाएंसार्थकता को बयाँ करती सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंआम जनता जी रही
जवाब देंहटाएंबेबसी और लाचारी में
मस्ती में घूम रहें
नेता और शिकारी
न करता कोई
दिल से इनका विरोध
लूट रहे हैं लूटने दो
आज उनका दौर है
कल हमारा भी होगा
सुन्दर रचना.
आपका स्वागत है श्रीमान.
हटाएंबहुत ही सटीक कविता बेपरवाह सरकार के लिए.
जवाब देंहटाएंशानदार रचना,बधाइयाँ.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक और सार्थक कविता का सृजन निकम्मी सरकार के लिए.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति राजेन्द्र जी,बहुत ही सटीक रचना.
जवाब देंहटाएंकथित धर्म निरपेक्ष ,वोट सापेक्ष व्यवस्था गत ढोंग पे व्यंग्य है .
जवाब देंहटाएंसटीक व सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसटीक व सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउम्दा , बढ़िया प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंUPA IS ON ITS LAST LEG.GOOD JOB BUDDY.
जवाब देंहटाएंमस्ती में घूम रहें
जवाब देंहटाएंनेता और शिकारी
न करता कोई
दिल से इनका विरोध
लूट रहे हैं लूटने दो
आज उनका दौर है
कल हमारा भी होगा
य़ही सोच तो समस्या की जड़ है. हम सामूहिक अपराधीकरण की ओर बढ़ रहे हैं. सदाचारी वही रह गय़े हैं जिन्हें भ्रष्टाचार का अवसर नहीं मिला. आपने बिल्कुल सही बात कही है इस कविता में.
सटीक , सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंlatest post सद्वुद्धि और सद्भावना का प्रसार
latest postऋण उतार!
जवाब देंहटाएंक्या बात है ?बहुत खूब कही है जो भी कही है
bahut achha likha hai
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
सटीक चित्रण, शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंबिलकुल आएगा अपना दौर भी ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्रण ...
अतुलनीय रचना!
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