संगत का असर सब कुछ बदल देता है। संगत अर्थात् दोस्ती, मित्रता, साथ है। संगत के कारण चाल-ढाल, पहरावा, खानपान, बात करने का तरीका, चरित्र सब कुछ में बदलाव आ जाता है।इसी बात को हम एक कहानी द्वारा देखते हैं.
एक बार एक राजा शिकार के लिए अपने काफिले के साथ किसी जंगल से गुजर रहा था. दूर-दूर तक शिकार नजर नहीं आ रहा था. वे धीरे-धीरे घनघोर जंगल में प्रवेश करते गये. उन्हें कुछ डाकुओं के छिपने की जगह दिखायी दी. पास पहुंचे तो पेड़ पर बैठा तोता बोल पड़ा, ‘‘पकड़ो-पकड़ो एक राजा आ रहा है. इसके पास बहुत सारा सामान है. लूटो-लूटो.’’
तोते की आवाज सुन कर सभी डाकू राजा की और दौड़ पड़े. डाकुओं को अपनी और आते देख कर राजा और उसके सैनिक दौड़ कर भाग खड़े हुए. भागते-भागते कोसों दूर निकल गये. सामने एक बड़ा-सा पेड़ दिखायी दिया. कुछ देर सुस्ताने के लिए उस पेड़ के पास चले गये. जैसे ही पेड़ के पास पहुंचे कि उस पेड़ पर बैठा तोता बोल पड़ा, ‘‘आइए राजन, हमारे साधु महात्मा की कुटी में आपका स्वागत है. अंदर आइए, पानी पीजिए और विश्रम कर लीजिए.’’
तोते की इस बात को सुन कर राजा हैरत में पड़ गया और सोचने लगा कि एक ही जाति के दो प्राणियों का व्यवहार इतना अलग-अलग कैसे हो सकता है. राजा को कुछ समझ नहीं आ रहा था. वह तोते की बात मान कर अंदर साधु की कुटिया की ओर चला गया. साधु-महात्मा को प्रणाम कर उनके समीप बैठ गया और अपनी सारी कहानी सुनायी, फिर पूछा, ‘‘ऋषिवर इन दोनों तोतों के व्यवहार में आखिर इतना अंतर क्यों है ?’’
साधु महात्मा बोले, ‘‘ये कुछ नहीं राजन, बस संगति का असर है. डाकुओं के साथ रह कर तोता भी डाकुओं की तरह व्यवहार करने लगा है और उनकी ही भाषा बोलने लगा है. जो जिस वातावरण में रहता है, वह वैसा ही बन जाता है. मूर्ख भी विद्वानों के साथ रह कर विद्वान बन जाता है और अगर विद्वान भी मूर्खो की संगत में रहता है, तो उसके अंदर भी मूर्खता आ जाती है.
सच बात तो यह है की संगत का प्रभाव हर मनुष्य पर होता है। इसलिए हमेशा ऐसी संगत ढूँढें जिससे हमारे मन में कभी बुरे विचार न पैदा न हों। क्योंकि हम चाहें या न चाहें जिस भी व्यक्ति से हम संपर्क करते हैं उसकी बातों का प्रभाव हम पर पड़ता है। अगर हम किसी कामी, व्यसनी, परनिंदक व्यक्ति से संपर्क रखते हैं तो स्वयं अपने अन्दर ही तकलीफ अनुभव होती है यह अलग बात है की अपने अज्ञान की वजह से उसे देख नहीं पाते हैं। इसके विपरीत कुछ लोगों को देखकर अच्छा लगता है क्योंकि अपने गुणों के कारण उनमें आकर्षण होता है। इसलिए हमेशा बेहतर लोगों की संगत करना चाहिए।
कबीर संगत साधु की, जौ की भूसी खाय |खीर खीड भोजन मिलै, साकट संग न जाय ||.......संत कबीर दास जी कहते हैं कि साधु की संगत में अगर भूसी भी मिलै तो वह भी श्रेयस्कर है। खीर तथा तमाम तरह के व्यंजन मिलने की संभावना हो तब भी दुष्ट व्यक्ति की संगत न करें।
दुष्ट लोगों की संगत का दुष्परिणाम भोगना ही पड़ता है यह एक ऐसा सत्य है जिसे झुटलाया नहीं जा सकता | सज्जन पुरुष और दुष्ट का कोई मेल नहीं और जब भी यह मिले कीचड़ सज्जन पुरुष पे अवश्य पड़ता है | आज कल एक होड़ सी लगी रहते है कि कैसे पैसे वालों से सम्बन्ध बनाये जाएं, कैसे समाज के ताक़तवर लोगों से सम्बन्ध बनाये जाएं | ऐसे चक्करों में यदि कोई सज्जन पुरुष दुनिया कि देखा देखि पड़ गया तो दुष्परिणाम भोगना ही पड़ता है |
कबीर संगत साधु की, जौ की भूसी खाय |खीर खीड भोजन मिलै, साकट संग न जाय ||.......संत कबीर दास जी कहते हैं कि साधु की संगत में अगर भूसी भी मिलै तो वह भी श्रेयस्कर है। खीर तथा तमाम तरह के व्यंजन मिलने की संभावना हो तब भी दुष्ट व्यक्ति की संगत न करें।
दुष्ट लोगों की संगत का दुष्परिणाम भोगना ही पड़ता है यह एक ऐसा सत्य है जिसे झुटलाया नहीं जा सकता | सज्जन पुरुष और दुष्ट का कोई मेल नहीं और जब भी यह मिले कीचड़ सज्जन पुरुष पे अवश्य पड़ता है | आज कल एक होड़ सी लगी रहते है कि कैसे पैसे वालों से सम्बन्ध बनाये जाएं, कैसे समाज के ताक़तवर लोगों से सम्बन्ध बनाये जाएं | ऐसे चक्करों में यदि कोई सज्जन पुरुष दुनिया कि देखा देखि पड़ गया तो दुष्परिणाम भोगना ही पड़ता है |
रहिमन उजली प्रकृति को, नहीं नीच को संग ।
करिया वासन कर गहे, कालिख लागत अंग ॥
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बिलकुल सच्ची बात.
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने संगत का असर जरुर होता है सार्थक कहानी .शामिल करने के लिये शुक्रिया .
जवाब देंहटाएंak aisi sacchayee jise nakar pana mushkil hai
जवाब देंहटाएं...बहुत अच्छा उदाहरण पेश किया है आपने!...अच्छी या बुरी संगत का असर तो होता ही है!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब राजेंद्र भाई .... सटीक!!!
जवाब देंहटाएंसमाज को पैगाम देने का अच्छा प्रयास है ,आज जरुरत है समाज को इसी तरह के पैगाम देने की ,और अपने कलम का हक़ अदा करने की।
जवाब देंहटाएंप्रेरक कहानी प्रस्तुत की है आपनें।
जवाब देंहटाएंसादर बधाई स्बीकारें।
कोई शक नही बुरी संगत का असर बुरा अच्छी संगत का असर अच्छा होता है बहुत बढ़िया प्रेरक कथा ,,,,आभार,
जवाब देंहटाएंRecent Post : अमन के लिए.
इसीलिए जरुरी हैं की अपने आसपास हमेशा अच्छे वातावरण का निर्माण किया जाए .
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक सीख..
जवाब देंहटाएंजी हाँ संगत का असर तो पड़ता ही है.जैसी संगति वैसा ही हमारे विचार बदलते जाते हैं.
जवाब देंहटाएंकहानी के माध्यम से बेहतरीन सन्देश.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सन्देश,सुन्दर कहानी के द्वारा.
जवाब देंहटाएंविल्कुल सही कहा आपने,चोर के साथ चोर और साधू के साथ साधू ही रहते हैं.
जवाब देंहटाएंसंगति सच में असर करती है। आप कहां, किस माहौल में रह रहे हैं उसके हिसाब से व्यक्तित्व बनेगा और आपका मूल्यांकन भी होगा। मध्यकालीन संतो ने संगति को लेकर भरपूर विवेचन किया है, जो अत्यंत लाभप्रद है।
जवाब देंहटाएंकहानी के माध्यम से सुन्दर सन्देश !!
जवाब देंहटाएंअच्छी या बुरी संगत का असर तो होता ही है,बेहतरीन सन्देश।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (14-04-2013) के चर्चा मंच 1214 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
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जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....बेहतरीन सन्देश...
पधारें "आँसुओं के मोती"
राजेंदर जी बहुत सुंदर कहानी कही आपने
जवाब देंहटाएंसादर
''माँ वैष्णो देवी ''
sach kaha apne......
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जवाब देंहटाएंसही बात है संगत का फल भुगतना पड़ता है
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नवरात्रों की बहुत बहुत शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंआपके ब्लाग पर बहुत दिनों के बाद आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ
बहुत खूब बेह्तरीन!शुभकामनायें
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
मेरी मांग
prerak kahani...
जवाब देंहटाएंराजेंदर जी कहानी के माध्यम से बहुत ही सही बात कही आपने ... जिस संगती में हम रहते हैं वैसे ही हमारा आचार व्यवहार हो जाता है !
जवाब देंहटाएंबढ़िया है राजेन्द्र जी-
जवाब देंहटाएंआभार -
संगत का असर ही महत्वपूर्ण है शिक्षा प्रद कथा.
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचना। संगत का असर पड़ता है। मैंने भी इसे महसूस किया है।
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