याद नहीं क्या क्या देखा था, सारे मंज़र भूल गये
उसकी गलियों से जब लौटे, अपना भी घर भूल गये
खूब गये परदेस कि अपने दीवारो-दर भूल गये
शीशमहल ने ऐसा घेरा, मिट्टी के घर भूल गये
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रात यूं दिल में तेरी खोई हुई याद आई
जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए
जैसे सहाराओं में हौले से चले बादे-नसीम
जैसे बीमार को बेवजह करार आ जाए
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लायी हयात आये कज़ा ले चली चले
ना अपनी ख़ुशी आये ना अपनी ख़ुशी चले
दुनिया ने किसका राहे-फ़ना में दिया है साथ
तुम भी चले चलो यूं ही जब तक चली चले
कम होंगे इस बिसात पे हम जैसे बदकिमार
जो चाल हम चले वो निहायत बुरी चले
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बहुत खूब ... लाजवाब ही हर मुक्तक ...
जवाब देंहटाएंपरदेश की कैफियत का खूब नक्षा खिंचा है। बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर रचना राजेंद्र जी,शुभकामनाओं सहित आभार।
जवाब देंहटाएंbehatareen ,ki chithhi aayee hai ghar ki yad satayee hai aankhe bhi bhar aayee hai yah kaisi tanhayee hai vah kya khoob
जवाब देंहटाएंजैसे बीमार को बेवजह करार आ जा
जवाब देंहटाएंya आ जाए ?
sabhi sundar !
बहुत सुन्दर भावाभ्यक्ति करते हुए मुक्तक! प्रथम ने तो हृदयातल को छू लिया!
जवाब देंहटाएंसादर बधाई स्वीकारें।
बेहद खूबसूरत प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंनवरात्रि और नवसंवत्सर की अनेकानेक शुभकामनाएँ.
सुंदर उत्कृष्ट प्रस्तुति
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंनवरात्रों की बधाई स्वीकार कीजिए।
बेहतरीन प्रस्तुति,बधाइयाँ.
जवाब देंहटाएंक्या बात है जनाब,दिल बाग बाग हो गया.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर यादगार है भाई
जवाब देंहटाएंसुन्दर बेहतरीन,
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति -
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आदरणीय ||
bahut hi behtrin muktak,abhar.
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सार्थक शेर,शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंवह क्या बात है,बहुत ही सुन्दर शेर.
जवाब देंहटाएंदिल से निकली आवाज,बहुत ही सुन्दर.
जवाब देंहटाएंआहा,बहुत ही सुन्दर असरार,बेहतरीन.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.........जैसे बीमार को बेवजह करार आए।
जवाब देंहटाएंआपसे अनुरोध कि मैटर के बैकग्राउंड में आंखों को फेवर करनेवाले कलर लगाएं। आपकी पोस्ट पढ़ते-पढ़ते मुझ जैसे चश्माधारकों को तेज रंग से दिक्कत होने लगती है।
जी,आगे से ख्याल रखेंगे.
हटाएंआपका आभार.मेरे ख्याल से शायद १७.०४.२०१२ को.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति ......
जवाब देंहटाएंkhubsoorat rachna
जवाब देंहटाएंबहुतखूब भाई!! बहुत सुन्दर रचना | आभार
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बहुत बढ़िया जी .......उसकी गलियों से जब लौटे अपना भी घर भूल गए
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंये शहर वो है जहाँ राक्षस भी हैं बहुत
हर एक तराशे हुए बुत को देवता न कहो
अब फिरते हैं हम रिश्तों के रंग-बिरंगे ज़ख्म लिये
सबसे हँस कर मिलना-जुलना बहुत बड़ी बीमारी है
वाह खूबसूरत ग़ज़ल
Really Good Shayari Picture....Keep It Up...
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