अजब हैं लोग थोड़ी सी परेशानी से डरते हैं
कभी सूखे से डरते हैं, कभी पानी से डरते हैं
तब उल्टी बात का मतलब समझने वाले होते थे
समय बदला, कबीर अब अपनी ही बानी डरते हैं
पुराने वक़्त में सुलतान ख़ुद हैरान करते थे
नये सुलतान हम लोगों की हैरानी से डरते हैं
हमारे दौर में शैतान हम से हार जाता था
मगर इस दौर के बच्चे तो शैतानी से डरते हैं
तमंचा ,अपहरण, बदनामियाँ, मौसम, ख़बर, कालिख़
बहादुर लोग भी अब कितनी आसानी से डरते हैं
न जाने कब से जन्नत के मज़े बतला रहा हूँ मैं
मगर कम-अक़्ल बकरे हैं कि कुर्बानी से डरते हैं
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ये रातों-रात कुछ का फूलना, फलना, चमक जाना
हमें बतलाओ इस करतब में क्या तकनीक होती है
हमें बतलाओ इस करतब में क्या तकनीक होती है
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तमंचा ,अपहरण, बदनामियाँ, मौसम, ख़बर, कालिख़
जवाब देंहटाएंबहादुर लोग भी अब कितनी आसानी से डरते हैं
बहुत उम्दा.
बहुत सुन्दर ग़ज़ल.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंहमारे दौर में शैतान हम से हार जाता था
जवाब देंहटाएंमगर इस दौर के बच्चे तो शैतानी से डरते हैं
... ye baat to solah ane sach hai
bilkul sahi kaha apne...........sundar prastuti
जवाब देंहटाएंनमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (15-09-2013) के चर्चामंच - 1369 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंवाह .. बढ़िया ग़ज़ल .. आपकी इस उत्कृष्ट रचना की प्रविष्टि कल रविवार, 15 सितम्बर 2013 को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in पर भी... कृपया पधारें ... औरों को भी पढ़ें |
जवाब देंहटाएंवाह .. बढ़िया ग़ज़ल .
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत भावमय रचना !! हिंदी दिवस की बहुत बहुत शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत भावमय रचना, सादर.
जवाब देंहटाएंतमंचा ,अपहरण, बदनामियाँ, मौसम, ख़बर, कालिख़
जवाब देंहटाएंबहादुर लोग भी अब कितनी आसानी से डरते हैं ..
बहुत खूब .... आज के सच को बयाँ करती जलावाब गज़ल है ... उम्दा ...
ब्लॉग प्रसारण लिंक 14 - हैरानी से डरते हैं ... [राजेन्द्र कुमार]
जवाब देंहटाएंआय हाय आदरणीय राजेंद्र भाई जी वाह क्या खूब बयां किया है आपने दिल खुश कर दिया आपने जिंदाबाद जिंदाबाद जिंदाबाद हार्दिक बधाई स्वीकारें भाई जी
न जाने कब से जन्नत के मज़े बतला रहा हूँ मैं
जवाब देंहटाएंमगर कम-अक़्ल बकरे हैं कि कुर्बानी से डरते हैं
सच में :)
जरा कुछ और बताईये
जन्न्त के बारे में
कम अक्ल हूं
दो बार में शायद
समझ में आ जाये !
wahh moujuda haalaat par sathik vyang ..
जवाब देंहटाएंहमारे दौर में शैतान हम से हार जाता था
मगर इस दौर के बच्चे तो शैतानी से डरते हैं
तमंचा ,अपहरण, बदनामियाँ, मौसम, ख़बर, कालिख़
बहादुर लोग भी अब कितनी आसानी से डरते हैं
sahi kaha bachcho ka bachpan chhin raha hai ..or logo se sukh chain ..charo taraf keval ek dar ka mahol rah gaya ..apne saye bhi ab darate hai hame ..badhayi evem shubhkamnaye :)
बड़ी ही दिलचस्प नज्म लिखी है भाई ,शायरी में तो मै भी आपसे काफी पीछे हूँ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर गजल राजेंद्र जी आभार।
जवाब देंहटाएंवाह! लाज़वाब ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder gazal.
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय रचना - बधाई
जवाब देंहटाएं"शब्दों की मुस्कुराहट पर
....अनकहा सच और अन्तःप्रवाह से प्रारब्ध तक का सफ़र बहुमुखी प्रतिभा:))
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